एक ऐसा खेल है जिसकी लोकप्रियता इतनी है कि लोग इसे भारत में सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि धर्म मानते हैं। क्रिकेट की इस लोकप्रियता के पीछे 1980s के दौर के कुछ घटनाएं कारण थे। ये वो दौर था जब इंडियन हॉकी का स्वर्णिम दौर अपने निचले स्तर की ओर बढ़ रहा था। 1980 में मास्को में हुए ओलंपिक में इंडियन हॉकी टीम ने अपना अंतिम मेडल जीता। इसके बाद ओलंपिक का अगला मेडल 2021 के टोक्यो ओलंपिक में आया यानी मास्को ओलंपिक के बाद इंडियन हॉकी टीम को मेडल जीतने में 4 दशक लग गए।
Indian Cricket Team & Drought of ICC Trophy
दूसरी ओर मास्को ओलंपिक के 3 साल बाद 1983 में कपिल देव की ऐतिहासिक कमजोर टीम ने डार्क हॉर्स की तरह फाइनल में क्रिकेट के उस समय के बादशाह वेस्ट इंडीज को हराकर वर्ल्ड कप अपने नाम किया। अब अपने डाउनफॉल की तरफ बढ़ रही थी इंडियन हॉकी टीम और इस वजह से इंडिया की जनता ने उगते सूरज को प्रणाम करते हुए इंडियन क्रिकेट टीम को चुना और एक हॉकी लवर इंडियन स्पोर्ट्स सोसाइटी का रुझान धीरे-धीरे ही सही क्रिकेट में बढ़ने लगा था।
लेकिन जबरदस्त टीम, जबरदस्त फंडिंग और फैंस के जबरदस्त सपोर्ट के बावजूद इंडियन क्रिकेट टीम ने अगले आईसीसी ट्रॉफी लगभग 19 साल बाद जीती। जब 2002 चैंपियन ट्रॉफी का फाइनल वाश आउट होने के बाद इंडिया और श्रीलंका को जॉइंट विनर डिक्लेयर कर दिया गया. इसके बाद इंडियन क्रिकेट टीम बोर्ड ने एक क्रांतिकारी फैसला लेते हुए महेंद्र सिंह धोनी के हाथों में टीम की कमान सौंपी और यहाँ से टीम इंडिया का एक स्वर्णिम दौर शुरू हुआ जो साल 2013 तक चला.
इंडिया ने इस दौरान 2007 में T20 वर्ल्ड कप, 2011 में वनडे वर्ल्ड कप और 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी अपने नाम की। इंडिया द्वारा अब अंतिम आईसीसी ट्रॉफी जीतने के बाद लगभग 10 साल का समय बीत चुका है, लेकिन इंडियन क्रिकेट टीम की आईसीसी ट्रॉफी का सूखा है जो मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। बावजूद इसके कि आज क्रिकेटिंग रिसोर्सेज के मामले में भारत दुनिया का सबसे अमीर देश है।
एक आंकड़े के मुताबिक आज इंडियन क्रिकेट बोर्ड यानी बीसीसीआई की नेट वर्थ दो बिलियन डॉलर से ज्यादा है। साथ ही आज इंडिया के पास विराट कोहली, रोहित शर्मा, जैसे अनुभवी प्लेयर्स के साथ-साथ शुभमन गिल और मोहम्मद सिराज जैसे युवा खिलाडियों का साथ भी है। लेकिन फिर भी पिछले 10 सालो से लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने और युवा प्रतिभाओं को ढूंढ निकालने के बावजूद इंडियन क्रिकेट का ट्रॉफी कैबिनेट खाली पड़ा हुआ है।
हाल ही में दूसरे वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल खेला गया और यहाँ भी इंडियन टीम को लगातार दूसरे वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल में आकर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सवाल है कि आखिर इंडियन टीम के साथ ऐसा क्या हुआ कि वर्ल्ड के कई बेहतरीन खिलाड़ियों से लैस होने के बावजूद इंडियन टीम नॉकआउट मैचेस की बाधा को पार नहीं कर पा रही है।
आज के इस स्टोरी में हम इंडियन क्रिकेट टीम के पिछले 10 सालों से चल रहे ट्रॉफी के सूखे के बारे में चर्चा करेंगे। जहाँ हम इंडियन क्रिकेट टीम के पिछले 10 सालों की परफॉर्मेंस का विश्लेषण करेंगे और उसके पीछे के कारणों को भी समझने का प्रयास करेंगे और इन कारणों को दूर करने के लिए क्या-क्या संभावित हल हो सकते हैं, इसके बारे में भी हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
पिछले 10 सालों में इंडियन टीम का परफॉरमेंस
इंडियन क्रिकेट टीम ने अपनी अंतिम आईसीसी ट्रॉफी 2013 में जीती थी. जब फाइनल में इंग्लैंड को उन्हीं के घर में हराकर इंडिया ने चैंपियन ट्रॉफी को अपने नाम किया था। उसके बाद इंडिया ने कई सारे आईसीसी टूर्नामेंट्स खेले हैं और लगभग हर आईसीसी टूर्नामेंट की नॉकआउट स्टेज में इंडिया ने शिरकत की है। 2013 के चैंपियंस ट्रॉफी की जीत के बाद इंडिया ने 2014 में बांग्लादेश में टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप खेला। जहाँ फाइनल में पहुंचने तक इंडिया ने कोई भी मैच नहीं हारा। लेकिन फाइनल में इंडिया को श्रीलंका के हाथों 6 विकेट से शिकस्त का सामना करना पड़ा।
अगले ही साल 2015 में ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर वनडे वर्ल्ड कप खेला गया. इस वर्ल्ड कप में भी ग्रुप स्टेज में टीम इंडिया ने कोई भी मैच नहीं हारा और एक के बाद एक लगातार 7 मैच जीते। लेकिन सेमी फाइनल में होम टीम ऑस्ट्रेलिया के हाथों इंडिया को हार का सामना करना पड़ा। कप्तान के रूप में महेंद्र सिंह धोनी का ये आखिरी आईसीसी टूर्नामेंट साबित हुआ।
इसके अगले साल 2016 में इंडिया में ही टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप को खेला गया और इंडियन क्रिकेट टीम इस टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप को जीतने की प्रबल दावेदार थी. ये पहला ऐसा आईसीसी टूर्नामेंट था जब विराट कोहली इंडिया की कैप्टेंसी कर रहे थे। ग्रुप स्टेज में न्यूजीलैंड ने इंडिया को हराया। लेकिन इंडिया सेमी फाइनल में पहुंच गई जहाँ उसका सामना वेस्ट इंडीज से हुआ। विराट कोहली की 89 रन की जबरदस्त इनिंग के बावजूद वेस्टइंडीज ने इस मैच को जीता और इंडियन टीम एक बार फिर सेमी फाइनल्स की स्टेज में पहुंचकर टूर्नामेंट से बाहर हो गई।
अगला आईसीसी टूर्नामेंट 2017 में इंग्लैंड में खेला गया और ये टूर्नामेंट था, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी का। इंडिया ने अपने ग्रुप स्टेज में श्रीलंका से हार का सामना जरूर किया लेकिन इंडिया फाइनल्स में पहुंची। जहाँ उसका सामना पाकिस्तान से हुआ। इंडियन टीम एक बार फिर से फाइनल का प्रेशर नहीं झेल पायी और पाकिस्तान के 338 रन के लक्ष्य के जवाब में मात्र 158 रनों पर ढेर हो गई।
इस तरह इंडियन टीम को एक और नॉकआउट मैच में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद अगले आईसीसी टूर्नामेंट के लिए इंडियन टीम को 2019 में इंग्लैंड में आयोजित हुए वनडे वर्ल्ड कप का इंतज़ार करना पड़ा। इस वर्ल्ड कप की ग्रुप स्टेज में इंडियन टीम ने शानदार परफॉरमेंस देते हुए 9 में से 7 मैच जीते। लेकिन सेमीफाइनल्स में टीम को न्यूजीलैंड से हार का एक बार फिर सामना करना पड़ा और नॉकआउट मैच में एक बार फिर हार का सिलसिला जारी रहा।
इसके बाद सबसे पहले वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप की साइकिल में इंडिया ने टॉप position पर finish किया और 2021 में इंग्लैंड में आयोजित हुए फाइनल में इंडियन टीम का सामना न्यूजीलैंड से हुआ और इंडिया इस फाइनल को भी हार गई और फिर उसके बाद अगला आईसीसी टूर्नामेंट 2021 में यूएई में आयोजित हुआ। ये टूर्नामेंट टी20 वर्ल्ड कप का था और इंडिया टूर्नामेंट को जीतने के लिए फर्म फेवरेट के रूप में माना जा रहा था.
लेकिन 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी जीत के बाद हुए सभी आईसीसी टूर्नामेंट्स में से इस T-20 वर्ल्ड कप में इंडिया का प्रदर्शन सबसे खराब रही। ग्रुप स्टेज में न्यूजीलैंड और पाकिस्तान के हाथों मिली हार ने इंडियन टीम को बाहर का रास्ता दिखा दिया। 2022 में ऑस्ट्रेलिया में टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप के नेक्स्ट एडिशन का आयोजन किया गया. इस T20 वर्ल्ड कप के ग्रुप स्टेज में इंडिया ने साउथ अफ्रीका के हाथों हार का सामना जरूर किया। लेकिन इंडिया सेमी फाइनल्स में पहुंच गई।
सेमी फाइनल्स में एक बार फिर इंग्लैंड के हाथों हारकर टीम इंडिया ने टूर्नामेंट से एग्जिट की और उसके बाद लेटेस्ट आईसीसी टूर्नामेंट था. 2023 की वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जिसका फाइनल इंडिया को ऑस्ट्रेलिया के हाथों गवाना पड़ा यानी 2013 की चैंपियन ट्रॉफी जीत के बाद इंडिया ने टोटल 9 आईसीसी टूर्नामेंट्स खेले। जिनमें से एक टूर्नामेंट में इंडिया ग्रुप स्टेज से बाहर हुआ।
4 टूर्नामेंट में इंडिया सेमी फाइनल स्टेज में पहुंचा और 4 टूर्नामेंट में फाइनल स्टेज तक का सफर तय किया और अगर एक बॉर्डर पर देखे ना तो टीम हर टूर्नामेंट में दुनिया की टॉप टीम की तरह खेली। लेकिन फिर भी ICC Trophy इंडिया के हाथों से दूर रही पर आखिर इंडिया के knockout stages में इस below average performance के पीछे क्या कारण है, आइए जानते हैं.
खिलाडियों के प्रदर्शन पर आईपीएल का प्रभाव
साल 2008 में शुरू हुई आईपीएल यानी इंडियन प्रीमियर लीग ने इंडियन क्रिकेट की तस्वीर पूरी तरह बदल के रख दी. आईपीएल ने ना सिर्फ बीसीसीआई को विश्व के सबसे आमिर क्रिकेट बोर्ड बनाने में मदद की साथ ही इंडियन क्रिकेट को जसप्रीत बुमराह, सूर्य कुमार यादव और हार्दिक पांड्या, जैसे नायाब और आविष्कारक सितारे भी दी है। पिछले कुछ समय से ये देखा गया है कि आईपीएल की वजह से इंडियन क्रिकेट टीम को काफी सारे अनदेखी नुकसान भी झेलने पड़ते हैं.
खेल विशेषज्ञ की माने तो आईपीएल ने परोक्ष रूप से इंडियन डोमेस्टिक क्रिकेट से आने वाले खिलाड़ियों के परंपरागत चैनल को बदल दिया है. जहाँ पहले किसी खिलाड़ी के लिए इंडियन क्रिकेट टीम में आने का रास्ता रणजी ट्रॉफी या विजय हजारे जैसे लम्बे फॉर्मेट में अपनी काबिलियत को साबित करना होता था. वहीं अब ये सिलेक्शन प्रोसेस कहीं ना कहीं आईपीएल केंद्रित हो गई है.
अब आईपीएल में बढ़िया प्रदर्शन टीम इंडिया के टिकट को पाने में बड़ा रोल अदा करती है. नतीजा ये होता है कि खिलाड़ी 20 ओवर वाले क्रिकेट फॉर्मेट को ध्यान में रखकर अपने कौशल पर काम करते हैं. जहाँ एक गेंदबाज स्विंग की बजाय यॉर्कर और स्लोवर बॉल्स जैसे गुणों पर ज्यादा ध्यान देता है। वहीं एक बल्लेबाज तकनीकी रूप से ज्यादा सक्षम होने के बजाय हार्ड हिटिंग और आविष्कारक शॉट्स जैसे तकनीक पर जयादा ध्यान देता है.
इसकी वजह से ये प्लेयर्स शार्ट फॉर्मेट के लिए तो तैयार हो जाते हैं. लेकिन वहीं लम्बे फॉर्मेट का टच खो देते हैं। साथ ही साथ आधुनिक समय में क्रिकेट पहले से ज्यादा फ़ास्ट हुआ है और ऊपर से टीम का केलिन्डर भी बहुत ज्यादा व्यस्त हो जाता है। ऐसे में आईपीएल के दौरान हर दूसरे दिन खेला गया मैच इंडियन प्लेयर्स के वर्क लोड को बढ़ा देते हैं. जिसका प्रबंधन करना अपने आप में बहुत प्रोब्लेमैटिक है.
इसके साथ ही क्योंकि आईपीएल t20 फॉर्मेट में खेला जाता है और ये काफी फ़ास्ट फॉर्मेट है. ऐसे में लगातार दो महीने तक T20 क्रिकेट खेलने के बाद जब वनडे या फिर टेस्ट फॉर्मेट में इंडियन क्रिकेट टीम उतरती है तो इतनी जल्दी वो फॉर्मेट के बदलाव को अपना नहीं पाते। इसका नतीजा होता है कि महत्वपूर्ण टूर्नामेंट्स में टीम को भयंकर हार का सामना करना पड़ता है.
हाल ही में संपन्न हुए वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में भी टीम इंडिया की खराब प्रदर्शन को काफी हद तक आईपीएल से जोड़कर देखा जा रहा है. क्योंकि वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप से लगभग एक सप्ताह पहले ही आईपीएल खत्म हुआ. उसके अलावा आईपीएल से जो क्रिकेटर्स के पास पैसे आते हैं, वह पैसा काफी ज्यादा होता है. ऐसे में ज्यादातर नए और यंग क्रिकेटर्स आईपीएल खेलने का सपना संजोए रखते हैं और इसी वजह से अब अधिकतर खिलाड़ी अपने आपको T-20 फॉर्मेट के हिसाब से ready कर रहे हैं. इसका खामियाजा इंडियन क्रिकेट को दूसरे फॉर्मेट में भुगतना पड़ रहा है.
क्योंकि जब बात आती है वनडे या फिर टेस्ट मैच की तो उसके लिए भारतीय खिलाडियों के पास जरुरत की स्किल नहीं होती है, खासतौर से जो नए प्लेयर्स टीम में आ रहे होते हैं. आईपीएल की वजह से इंडिया का इंटरनेशनल क्रिकेट खेलना भी कम होता जा रहा है. क्योंकि साल के दो महीने इंडियन प्लेयर्स आईपीएल में खेल रहे होते हैं.
अगर हम आज से 10 साल पहले की बात करें तो इंडियन क्रिकेट टीम काफी सारी द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय टूर्नामेंट्स खेला करती थी. लेकिन हम इंटरनेशनल मैचेस और इंटरनेशनल टूर्स में टी20 मैचों का नंबर बढ़ता जा रहा है और वनडे और टेस्ट मैच धीरे-धीरे कम रहे हैं. इसका एक नकारात्मक पहलू ये भी है कि आईपीएल इंडियन पिचेस में खेला जाता है।
जहां पे बाहर की पिच के मुकाबले काफी ज्यादा रन बनते है और कही ना कही ये खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय पिच और इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के लिए तैयार करने में भी एक अहम रोल play नहीं करता है और यही सारे नकारात्मक पहलू कही ना कही भारतीय क्रिकेट टीम को बड़े टूर्नामेंट में डराते है.
Is India the New Chokers of World Cricket
दोस्तों वर्ल्ड क्रिकेट में साउथ अफ्रीका टीम को हमेशा से चोकर्स के रूप में जाना जाता था। क्योंकि आईसीसी टूर्नामेंट्स के बाहर टीम जबरदस्त performance करती थी. लेकिन आईसीसी tournaments के crunch मैचज की बात आती थी तो टीम चौक कर जाती थी. ऐसे में सवाल ये है कि क्या अब इंडिया साउथ अफ्रीका की तरह मेजर टूर्नामेंट में एक चोकर बनती जा रही है। डेटा पर नजर डालें तो 2013 के बाद इंडिया ने जितने भी टूर्नामेंट खेले उनमें से 2021 के टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप को छोड़कर इंडिया ने ग्रुप स्टेटस में शानदार performance की.
लेकिन बात जैसे ही under प्रेशर knockout मैचेस में perform करने की आई तो टीम पूरी तरह collapse कर गई। example के लिए चैंपियन ट्रॉफी 2017 का फाइनल उठाकर देख सकते हैं। जहाँ ऑन पेपर इंडियन टीम पाकिस्तान की क्रिकेट टीम से काफी बेहतर टीम थी पर उसके बावजूद under प्रेशर टीम इंडिया की इनिंग्स initial overs में ही collapse कर गई।
इसी तरह 2019 वर्ल्ड कप में भी न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमी फाइनल में टीम इंडिया के बैट्समैन collapse कर गए और इंडियन टीम एक within reach टारगेट को chase नहीं कर पाई। इन सारे हारों का सबसे बड़ा reason है टीम इंडिया का एप्रोच। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन important knock-out मैचेज में इंडिया काफी defensive approach के साथ खेलती है।
इसके opposite अगर हम वर्ल्ड की सबसे successful क्रिकेट टीम ऑस्ट्रेलिया को देखेंगे तो समझ पाएंगे कि अपनी approach के कारण ही वो इतने ज्यादा आईसीसी trophies को अपने नाम कर पाते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया के पास हमेशा से एक शानदार टीम और स्टीव वॉ और रिकी पॉइंटिंग जैसे शानदार लीडर्स रहे है। लेकिन उसके बावजूद important knockout मैचेस में जिस approach के साथ ऑस्ट्रेलिया टीम उतरती है वो काफी अलग है.
उदहारण के लिए 2003 वर्ल्ड कप में ऑस्ट्रेलिया टीम ने पहली इनिंग्स में ऐसी एप्रोच के साथ बैटिंग की कि टीम इंडिया के लिए उस टारगेट को अचीव कर पाना नामुमकिन-सा हो गया था। इसी तरह 2007 वर्ल्ड कप का फाइनल हो या 2015 वर्ल्ड कप का फाइनल ऑस्ट्रेलिया हमेशा चैंपियन टीम की तरह फाइनल्स में शिरकत करती है और सिर्फ मेंस टीम ही नहीं बल्कि विमेंस टीम भी फाइनल्स को इसी approach के साथ खेलती है aggressive, fearless और strategically strong।
पिछले कुछ सालो में इंग्लैंड ने भी इस approach को अपनाया है. जिसे बैजबॉल का नाम दिया है और उसका रिजल्ट उन्हें 2019 वर्ल्ड कप और 2022 t20 वर्ल्ड कप ट्रॉफी के रूप में मिला। शायद इंडियन टीम को भी प्रेशर मैचेस में अपने कॉन्फिडेंस, अपने रिथम को revive करने की जरूरत है। क्योंकि इस बात में कोई शक नहीं है कि आज इंडिया के पास दुनिया के टॉप players मौजूद हैं. बस टीम को जरूरत है एक बेहतर approach की. जिससे टीम important मैचेज में अपनी defeat के जिंक्स को तोड़कर एक बार फिर आईसीसी ट्रॉफी देश के नाम कर सके।
Lack of Playing Time in Overseas Conditions
इंडियन टीम को लगातार आईसीसी टूर्नामेंट्स में मिल रहे निराशाजनक परिणामों के पीछे एक कारण ओवरसीज कंडीशंस में टीम का कम खेलना या सही समय पर ना खेलना भी माना जा सकता है कि अगर हम पिछले एक दशक में इंडिया द्वारा खेले गए आईसीसी टूर्नामेंट्स पर नजर डालें तो टीम ने two third से ज्यादा टूर्नामेंट्स को ओवरसीज जाकर खेला है। जहाँ कभी टीम को ऑस्ट्रेलिया के higher play content वाले पिचेस पर खेलना पड़ा। जहाँ फ़ास्ट bowlers को subcontinent पिचेस के मुकाबले ज्यादा बाउंस मिलती है।
वहीं कभी टीम इंग्लैंड के पिचेस पर आईसीसी टूर्नामेंट खेलने गई जिसे fast bowlers के लिए swing का heaven कहा जाता है। ऐसे में टीम इंडिया का साल के अधिकतम समय subcontinent conditions में खेलना भी इन defeats का मेजर reason माना जाता है। उदाहरण के तौर पर बीसीसीआई जानती है कि इस बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल इंग्लैंड में खेला जाना है तो क्या उससे पहले टीम को इसी साल इंग्लैंड के टूर पर नहीं भेजा जा सकता था।
ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या बीसीसीआई आईसीसी टूर्नामेंट से ज्यादा domestic leagues को तवज्जो देने है क्योंकि बीसीसीआई का ये एक बड़ा revenue source है। क्या बीसीसीआई टीम के schedule को future में होने वाले major tournament से synchronize करके नहीं तय कर सकती? ताकि टीम इन tournaments के लिए बेहतर तरीके से तैयार की जा सके.
प्रोब्लेम्स इन टीम सिलेक्शन
आज experts इंडियन cricket team के बड़े tournaments में हार को team selection के साथ भी जोड़कर देख रहे हैं, कुछ experts का आरोप है कि जब Indian cricket team का selection होता है, तो recent form और performance के बजाय बड़े नामों को काफी तवज्जो दी जाती है। यानी पुराने players भले ही out of form हो, runs ना score कर रहे हों या फिर अच्छी bowling ना कर पा रहे हों. पर उनके बड़े status के चलते उन्हें team में जगह मिल जाती है और आसान शब्दों में कहूँ तो individuals या फिर individual player team से बड़े होते जा रहे हैं।
इस वजह से कई सारे domestic players जो actually में इंडियन टीम में select होने के हकदार होते हैं वो सब पीछे रह जाते हैं। for example domestic cricket में सरफराज खान एक ऐसा नाम है जो पिछले काफी समय से लगातार रणजी में run बना रहे हैं. लेकिन उसके बावजूद इंडियन टीम में अभी तक उनकी entry नहीं हो पाई और selectors ने उनके नाम को consider भी नहीं किया।
जबकि चेतेश्वर पुजारा के एल राहुल, रोहित शर्मा और श्रीकर भरत कुछ ऐसे players हैं जिनको काफी मौके मिले हैं। पर उनकी हालिया form और performance खास नहीं रही। इन players के comparison में यशश्वी जायसवाल, मयंक अग्रवाल और संजू सैमसंग जैसे ढेरों ऐसे नाम इंडियन cricket में मौजूद है जो इन players की जगह लेने के लिए तैयार है या फिर at least इन्हें टेस्ट किया जा सकता है और कहीं ना कहीं इंडियन प्रीमियर league की वजह से भी इंडियन टीम में selection का bias देखा जा सकता है और इसका सबसे बड़ा भुगतान bowling को भुगतना पड़ता है।
क्योंकि अगर आप देखेंगे तो पिछले कुछ समय में इंडिया की bowling उसकी selection process को और ज्यादा expose कर पाती। पिछले एक दशक में अगर हम इक्का-दुक्का नाम छोड़ दें तो हम कभी भी एक strong bowling team को बना नहीं पाए हैं और कहीं ना कहीं ये इंडियन selection team की loopholes को दर्शाता है।
इसके अलावा अगर आप recent examples देखें तो ऋषभ पंत के injured होने के बाद world test championship के लिए इशान किशन को backup wicketkeeper के रूप में टीम इंडिया का हिस्सा बनाया गया. जबकि इशान किशन कभी भी test format के player नहीं रहे हैं और इंडिया के पास संजू सैमसन और इंडिया ए टीम के लिए लंबे समय से अच्छी performance देने उपेंद्र यादव जैसे deserving players हैं। लेकिन selectors ने इन्हें नजरअंदाज किया।
Internal Conflicts
इंडियन क्रिकेट टीम में समय-समय पर कुछ internal conflicts के बारे में खबरें सामने आती रही हैं और इस conflict ने भी कहीं ना कहीं टीम की performance को hinder किया है। इसका सबसे prime example है कुंबले-कोहली विवाद। दरअसल जून 2016 में अनिल कुंबले को इंडिया का कोच नियुक्त किया गया था। लेकिन एक साल बाद ही चैंपियन ट्रॉफी के ठीक बाद 2017 में अनिल कुंबले ने इंडियन कोच के पोस्ट से रिजाइन कर दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इसका reason था उनके और इंडियन क्रिकेट टीम के उस समय रहे कैप्टेन विराट कोहली के बीच मौजूद रहे differences. ऐसा माना जाता है कि एक्स इंडियन legend अनिल कुंबले काफी ओल्ड स्कूल method वाले coach थे जो अपने strict rules और intense practice sessions के लिए जाने जाते थे। वहीं विराट कोहली lead Indian cricket team एक new generation cricket team थी जो अनिल कुंबले के methods को accept नहीं कर पा रही थी. इन्हीं differences के चलते एक साल बाद ही अनिल कुंबले ने अपने पद से resignation दे दिया।
इस controversy के अलावा recently सौरव गांगुली से related भी एक controversy सामने आई। जहाँ पे ये कहा गया कि सौरव गांगुली विराट कोहली को कैप्टन के रूप में पसंद नहीं करते थे और इस तरह की खबरें कहीं ना कहीं team में instability का माहौल पैदा करती है. ना सिर्फ selectors और players के बीच में बल्कि आपस में senior players के बीच में भी विवाद होता है और इससे team का सामंजस्य ना चाहते हुए भी बिगड़ता है.
कुछ ही महीनों बाद वर्ल्ड कप की शुरुआत होने वाली है और आईसीसी ट्रॉफी को घर लाने का ये इंडिया के पास बेस्ट चांस होने वाला है. पर 2023 के इस वनडे वर्ल्ड कप को जीतने के लिए टीम इंडिया को आखिर क्या बदलाव करने चाहिए। सबसे पहले नॉकआउट मैचेस की बाधा को पार करने के लिए टीम इंडिया को अपनी एप्रोच पर काम करना होगा। टीम इंडिया को डिफेंसिव नहीं बल्कि एग्रेसिव और fearless होने की नीड़ है.
जिससे opposite टीम के ऊपर प्रेशर बनाया जा सके. साथ ही टीम इंडिया में हर सीरीज और टूर्नामेंट के साथ होने वाले बदलाव भी बंद करने पड़ेंगे। इंडियन क्रिकेट टीम को एक सेटल्ड 15 players का pool तैयार करना होगा। जिन्हें वर्ल्ड कप तक एक साथ एक टीम की तरह खिलाया जाए, साथ ही selectors को टीम इंडिया में नामों की जगह performing players को priority देनी होगी।
आईपीएल की जगह domestic cricket को priority देनी होगी। यानी उन players को टीम का हिस्सा बनाया जाए। जो नाम से ही नहीं उस समय अपने काम से बड़े हों। वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले इंडिया एशिया कप खेलने वाली है, जो एक मल्टी टीम टूर्नामेंट है. इस टूर्नामेंट को जीतकर इंडिया अपने world cup campaign की शुरुआत कर सकती है.
लेकिन ये ज़रूरी है कि टीम इंडिया जल्द से जल्द सभी कमियों को दूर करें और इसके साथ ही अपनी सिर्फ batting ही नहीं बल्कि एक strong bowling unit को भी ले के जाए और again इसके लिए domestic cricket में एक बार फिर से players को खंगालना पड़ेगा क्योंकि current Indian team में वो तीन या 4 fearless bowlers अभी देखने को नहीं मिलते हैं जो world को challenge कर सके.
अगर ये सारे changes होते हैं तो हम कहीं ना कहीं ये कह सकते हैं कि शायद Indian cricket fans को एक और heartbreak से बचाया जा सके और 10 साल बाद इंडिया में ही उन्हें वापस एक आईसीसी ट्रॉफी का तोहफा दिया जा सके। इस पूरे मुद्दे पर आपका क्या opinion है, क्या changes हैं, क्या problems हैं, आपके according इंडियन क्रिकेट टीम में जिनको change किया जा सकता है comment सेक्शन में जरूर बताइएगा।
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