Mithila Rajya Statehood Demand in Bihar: आपने भोजपुरी गाना तो जरूर सुना होगा। जब भी भोजपुरी की बात होती है तो बिहार का नाम आपके सामने खुद ही आ जाता होगा। अधिकतर लोग यही सोचते हैं कि बिहार में सिर्फ भोजपुरी ही बोली जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं? बिहार में भोजपुरी के बराबर ही एक भाषा मैथिली भी है जो वहां बोली जाती है।
आपने मैथिली गाना सुना हो या ना सुना हो। लेकिन मिथिला का मखाना जरूर खाया होगा। बिहार में मैथिली, भोजपुरी, अंगिका और बज्जिका जैसी भाषाएं मुख्य रूप से बोली जाती है। लेकिन यहाँ पर एक महत्वपूर्ण बात ये है कि मैथिली बिहार की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे हमारे संविधान के आठवीं अनुसूची शामिल कर अधिकृत किया गया है. हालांकि वर्तमान में बिहार की राजभाषा सिर्फ हिंदी और उर्दू है।
आप लोग सोच रहे होंगे कि हम बिहार की भाषाओं खासकर मैथिली के बारे में बात क्यों कर रहे हैं? दरअसल बिहार में पिछले कुछ सालो में कई संगठन समय-समय पर भाषा और संस्कृति के नाम पर एक मिथिला राज्य या मिथिलांचल की मांग कर रहे हैं।
Mithila Rajya Statehood Demand in Bihar
आखिर क्या है मिथिला राज्य की मांग का इतिहास। मिथिला राज्य में बिहार के किन-किन जिलों को शामिल करने की मांग हो रही है? चलिए जानते हैं विस्तार से.
भीख नहीं अधिकार चाहिए। हमरा मिथिला राज्य चाहि। मिथिला स्टूडेंट यूनियन के आह्वान पर अगस्त 2022 में जंतर-मंतर पर हजारों की संख्या में आंदोलनकारियों को ये नारा लगाते देखा गया था। इसके बाद दिसंबर 2022 में बिहार की राजधानी पटना में हजारों की संख्या में युवाओं ने पटना के गांधी मैदान से राजभवन तक पैदल मार्च किया था।
समय-समय पर मिथिला से जुड़े संगठन बिहार में मिथिला राज्य की मांग को लेकर अपनी आवाज बुलंद करते रहते हैं। मिथिला राज्य की मांग कोई नई बात नहीं है. ये मांग बिहार बनने से भी पुराना है।
मिथिलांचल एक भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है, जो पूर्व में महानंदा नदी, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडक नदी और उत्तर में हिमालय की तलहटी से घिरा है। मिथिलांचल की बात हो तो आप कोसी नदी को नहीं भुला सकते हैं.
मिथिलांचल में बिहार और झारखंड के बड़े हिस्से और नेपाल के पूर्वी तराई के आसपास के जिले शामिल है। मिथिला में मूल भाषा मैथिली है और इसे बोलने वालों को मैथिल कहा जाता है। आपको मिथिला के बारे में और ज्यादा बताने के लिए आपको लेकर चलते हैं त्रेता युग में.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा निमि के पुत्र मिथी के राजवंश को ही मैथिल कहा गया है। कई अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिथि के द्वारा ही मिथिला को बसाने की बात स्पष्ट की गई। रामायण में देवी सीता की जन्मस्थली मिथिला को कहा गया है.
ऐसा माना जाता है कि बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुरोना नामक स्थान पर, सालों के सूखा पड़ने के बाद जब राजा जनक ने अपने खेत में हल जोत रहे तो उसी समय धरती से सीता माँ एक मटके में प्रकट हुई थी।
पौराणिक काल से वर्तमान काल तक मिथिला राज्य का इतिहास सुनहरे पन्नों में मौजूद है। महाजनपद काल में मिथिला वजीसन का हिस्सा था। मिथिला के मध्यकालीन इतिहास के बारे में बात करें तो 1381 में मिथिला पर करानक वंशीय राजा हरी सिंह का शासन था।
उसी समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुगलक का शासन था। बंगाल से विजय प्राप्त कर दिल्ली लौट रहे Tughlaq को जब Mithila के राज्य के बारे में जानकारी मिली तो उसने इस पर आक्रमण कर दिया और इसे अपने कब्जे में ले लिया। Mughal काल से पहले Sikandar Lodhi ने इस क्षेत्र के कमान Aladdin को दी जो कि असफल शासक साबित हुआ.
Akbar के समय में यहाँ का राजा Mahesh Thakur को बनाया गया जो कि Khandwal वंश के थे. Mahesh Thakur की विद्युतता से Akbar बहुत खुश थे. जिसके चलते उन्होंने स्वतंत्र रूप से राज चलाने की अनुमति मिली। भारत की आजादी तक इस क्षेत्र में Khandwal वंश के ही राजा राज करते रहे. इस वंश के अंतिम राजा कामेश्वर सिंह थे.
खण्डवाल वंश के राजाओं को बेहद ही दानवीर राजाओं के रूप में भी जाना जाता है. खण्डवाल वंश के अंतिम राजा कामेश्वर सिंह के पिता रामेश्वर सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए उस समय 50 लाख रुपए दान किया था. दरभंगा का वर्तमान एयरपोर्ट भी कामेश्वर सिंह का ही हुआ करता था.
जिसे चीन के साथ युद्ध के समय दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह ने इंडियन एयरफोर्स को दान कर दिया था. फिर पटना में मौजूद दरभंगा महल को पटना विश्वविद्यालय को दान में दे दिया था।
मिथिला की सांस्कृतिक इतिहास की बात करें तो ये बहुत ही शानदार रहा है. मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती का आदि शंकराचार्य के साथ शास्त्रार्थ हुआ था. जिसमें शंकराचार्य को हार माननी पड़ी थी. बिहार के सहरसा जिले का महिषी गाँव, मंडन मिश्र का गांव था। माना जाता है कि उनका तोता भी संस्कृत बोलता था।
मिथिला को महाकवि कालिदास, संत लक्ष्मीनाथ गोसाई, उदयनाचार्य और विद्यापति की भूमि भी मानी जाती है। मिथिला के खानपान और पर्वों को भी बेहद ही उन्नत माना जाता है। वहां पर पान-मखाना, मछली-दही, पाग-दुपट्टा, जनेऊ-सुपारी काफी लोकप्रिय है। यहाँ के मिथिला मखाना और रोहू मछली को तो जी आई टैग भी मिला हुआ है।
मिथिला के लोकगीत भी काफी मशहूर है। सोशल मीडिया की दुनिया में मशहूर बिहार की लोक गायिका मैथिली ठाकुर के गानों को आपने भी जरूर सुना होगा। झिझिया, डोमकच, जट-जटनी और झरनी जैसे लोक-नृत्य, यहाँ पर काफी लोकप्रिय है.
मिथिला क्षेत्र की सबसे अनोखी पहचान मधुबनी painting को लेकर भी है। मधुबनी painting को विश्व प्रसिद्ध art form माना जाता है। आज के समय में मधुबनी पेंटिंग का दायरा बहुत बढ़ गया है. यह कला बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा, मुजफ्फरपुर और मधुबनी जिलों के अलावा नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है।
प्रारंभ में इसकी कला की शुरुआत रंगोली के रूप में रहने के बाद, ये कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप से कपड़ों, दीवारों एवं कागज पर भी उतर आई है। अब तो यह डिजिटली भी उपलब्ध है.
मिथिला क्षेत्र की महिलाओं द्वारा द्वारा शुरू किया गया इस घरेलू चित्रकला को तो अब पुरुषों ने भी अपना लिया है और इसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल चुकी है. Madhubani Paintings ज्यादातर प्राचीन महाकाव्यों से कहानियों, प्राकृतिक दृश्यों और देवताओं के साथ पुरुषों और उसके सहयोग को दर्शाती है.
सूर्य, चंद्रमा और तुलसी जैसे धार्मिक पौधों जैसे ही प्राकृतिक वस्तुओं को शाही अदालत के दृश्यों और शादियों जैसे सामाजिक कार्यक्रमों को भी व्यापक रूप से चित्रित किया जाता है.
चलिए अब आपको Mithila राज्य की मांग के आधुनिक इतिहास पर ले चलते है. अंग्रेजों ने 1881 में Mithila शब्द को भारत सरकार के dictionary में जोड़कर इसको पहचान दी. इसके बाद 1902 में ब्रिटिश अधिकारी सर जॉर्ज ग्रिएटसन ने भाषा आधारित सर्वेक्षण किया और मिथिला राज्य का नक्शा तैयार किया।
22 मार्च साल 1912 को बंगाल से अलग होकर नया राज्य बिहार बना. उस समय भी बिहार राज्य की मांग के बीच सर जॉर्ज ग्रिएटसन के सर्वेक्षण के आधार पर स्थानीय लोगों द्वारा मिथिला राज्य की मांग की गई. लेकिन अंग्रेजों ने इस मांग को ठुकरा दिया।
1921 में दरभंगा राज्य के महाराजा रामेश्वर सिंह ने भी मिथिला राज्य की मांग को अंग्रेजों के सामने उठाया। लेकिन उस समय भी ये मांग खारिज कर दी गयी.
1936 में जब उड़ीसा को बिहार से अलग किया गया तो एक बार फिर मिथिला राज्य की मांग ने जोर पकड़ी। लेकिन इस बार भी आवाज दब गई. 1947 में भारत की आजादी के बाद भाषा के आधार पर देशभर में कई राज्यों का जन्म हुआ. लेकिन मिथिला राज्य की मांग एक बार फिर अनसुनी कर दी गई.
1986 में 3 दिवसीय रेल रोको आंदोलन के जरिए मिथिला राज्य की मांग को फिर से जिंदा किया गया. 1996 में मिथिला राज्य संघर्ष समिति ने एक जनसंपर्क अभियान शुरू किया और मिथिलांचल के विकास के लिए एक स्वायत्त विकास परिषद यानी autonomous development council की मांग की.
जब 2000 में बिहार से झारखंड को अलग किया गया तो उस समय भी मिथिला राज्य की मांग अनसुनी कर दी गई. हालांकि मिथिला राज्य के समर्थकों को उस समय बड़ी सफलता मिली जब 52 वें संविधान संशोधन के जरिए 2003 में मैथिली भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया.
इसके बाद से समय-समय पर अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने मिथिला राज्य बनाने की मांग की. लेकिन ये मांग कभी भी जमीन पर नहीं उतर सकी. मिथिला राज्य की मांग पहली भाषा और संस्कृति के आधार पर ही की जाती थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये मांग रोजगार, विकास और कल-कारखाने के मुद्दे के जरिए की जा रही है.
हाल के दिनों में मिथिला राज्य की मांग करने वाली संस्था मिथिला स्टूडेंट यूनियन के द्वारा प्रस्तावित मिथिला राज्य को लेकर जो मैप जारी किया गया है, उसमें बिहार के 24 जिले मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, सहरसा, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, मुंगेर, बेगूसराय, शिवहर, समस्तीपुर, भागलपुर, अररिया, किशनगंज, कटिहार, सुपौल, पश्चिम चंपारण, बांका, शेखपुरा, जमुई, लखीसराय और खगड़िया तथा झारखंड के छह जिले साहिबगंज, गोंडा, पाकुर, दुमका, देवघर और जामताड़ा शामिल है.
मिथिला राज्य की मांग में बिहार और झारखंड को मिलाकर कुल 30 जिले शामिल किए गए हैं. इसमें शामिल अधिकतर जिले उत्तर बिहार के जिले हैं. मिथिला राज्य की मांग करने वाले का कहना है कि उत्तर बिहार के जिलों के साथ भेदभाव हो रहा है.
जबकि दक्षिण बिहार के जिले को ज्यादा वैल्यू मिल रही है. उत्तर बिहार ही वो हिस्सा है जहाँ से हर साल नेपाल के पहाड़ों से निकलने वाली नदियाँ यहाँ के जिलों में बाढ़ की तबाही लेकर सामने आती है। यही कारण है कि ये क्षेत्र काफी पिछड़ा है।
मिथिला राज्य के समर्थक केंद्र और राज्य सरकार पर आरोप लगाते हैं। मिथिला क्षेत्र में विकास के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की गई है। एक समय था जब भारत के चीनी उत्पादन का लगभग 40 फ़ीसदी चीनी मिथिला क्षेत्र से ही आता था। लेकिन राजनीतिक और नकारात्मक सोच के कारण आज यह अनुपात सिमटकर मुश्किल से 4 फीसदी रह गया।
स्वतंत्रता से पहले इस क्षेत्र में 33 चीनी मिलें थी. लेकिन आज मात्र 28 मिलें बची है. जिसमें से केवल 5 मिल ही कार्यरत है. उन लोगों का मानना है कि मिथिला राज्य बनेगा तो उस क्षेत्र के लोगों को अच्छी शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य मिलेगा।
आखिर क्या बात है कि बंगाल से बिहार के अलग होने से पहले से ही जिस राज्य की मांग शुरू हो चुकी थी. जिनकी भाषा और संस्कृति का एक लंबा इतिहास रहा है उस मिथिला राज्य की मांग को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. दरअसल इसके पीछे कारण ये है कि मिथिला राज्य का प्रस्तावित नक्शा! इस नक्शे में जिन जिलों को शामिल किया गया है उसके कई जिले इस राज्य की मांग से सहमति नहीं रखते।
इनमें कुछ ऐसे जिले शामिल किए गए हैं जहाँ के लोग बज्जिका और अंगिका भाषा बोलते हैं. मिथिला राज्य के विरोधियों का कहना है कि इस आंदोलन का प्रभाव बिहार के सिर्फ दो जिलों तक ही सीमित है. दरभंगा और मधुबनी यही वो दो जिलें हैं, जहाँ सबसे ज्यादा मैथिली बोली जाती है. इन जिलों के अलावा पूर्णिया, मधेपुरा, कटिहार, अररिया, किशनगंज और सहरसा जिले में भी मैथिली बोलने वालों की एक बड़ी संख्या है.
एक अनुमान के मुताबिक मैथिली भाषा बोलने वालों की संख्या करीब 5 करोड़ के आसपास है। आप क्या सोचते हैं? भाषा और संस्कृति के नाम पर देश में नए राज्य बनने चाहिए? क्या आपको लगता है कि बिहार के विकास के लिए नया मिथिला राज्य की जरूरत है? अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
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