Shilpi Jain Case, Patna का वो केस जिसने दहला दिया था देश, Gautam Singh Case Bihar

Shilpi Jain Case

Shilpi Jain Case: लगभग 24 साल पहले Bihar की राजधानी Patna में एक ऐसी वारदात को अंजाम दिया गया था जिसके बारे में सुनकर आज भी आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे. जितनी भयावह वो घटना थी उससे कई ज्यादा भयावह इस घटना के होने के बाद police और प्रशासन का रवैया था. Postmortem से पहले police ने खुद ही postmortem report तैयार कर ली थी. सबूत मिटाने का काम police ने खुद ही किया था.

Shilpi Jain Case Patna

Shilpi Jain Case

कथित तौर पर तब Patna Police ने अपनी पूरी ताकत पीड़ित को न्याय दिलाने की बजाय अपराधियों को बचाने में लगाई थी. इसकी वजह ये थी कि इस case का prime suspect कोई और नहीं बल्कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का साला और बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का भाई साधू था।

कहा जाता है कि तब साधु यादव खुद ही सरकार हुआ करते थे। इस कारण पुलिस ने पूरी सच्चाई को ही बदल दिया था। हम शिल्पी-गौतम मर्डर केस की बात कर रहे हैं। वैसे तो अदालत की फाइलों में शिल्पी गौतम केस एक suicide case के तौर पर दबा दी गई। मगर दावों के मुताबिक सच्चाई कुछ और ही थी।

तो आखिर क्या थी इस शिल्पी गौतम केस की पूरी सच्चाई चलिए जानते हैं. सब कुछ detail में. यकीन मानिए जब आप इस case की पूरी सच्चाई सुनेंगे तो आपकी रूह कांप जाएगी।

सबसे पहले इस कहानी के किरदारों के बारे में जानना बेहद जरूरी है। इस कहानी के दो सबसे अहम किरदार हैं। शिल्पी जैन और गौतम सिंह। इस घटना के समय शिल्पी जैन की उम्र 23 साल थी. शिल्पी पटना के एक बड़े businessman उज्जवल कुमार जैन की बेटी थी. 1999 के आसपास उज्जवल जैन पटना में कमला stores नाम की ready made कपड़ों की एक बहुत बड़ी दुकान चलाया करते थे।

शिल्पी जैन बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थी. पढ़ाई में तेज़ होने के साथ-साथ शिल्पी दिखने में भी काफी खूबसूरत थी. इन्होंने घटना के कुछ साल पहले ही मिस पटना का भी ख़िताब जीता था। घटना के समय शिल्पी पटना women’s college से graduation complete करने के बाद computer class कर रही थी.

इस कहानी का दूसरा अहम किरदार गौतम सिंह भी कोई मामूली इंसान नहीं था। गौतम सिंह के पिता का नाम डॉक्टर वी एन सिंह था. जो पूरे परिवार के साथ लंदन में रहते थे। समय-समय पर ये पटना भी आते रहते थे। डॉक्टर वी एन सिंह लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबियों में से एक थे। वो कैसे? जानेंगे आगे। चूँकि गौतम सिंह के पिता लालू प्रसाद यादव के करीबी थे। इस कारण गौतम सिंह को बिहार की राजनीति को करीब से समझने का मौका मिलता है और वो लंदन छोड़कर पटना में रहते हुए राजनीति में ही अपना भविष्य बनाने की कोशिश में लग जाते हैं।

1999 के आसपास लालू यादव चारा घोटाले के आरोप में जेल में बंद थे। जबकि बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर अब लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी आ चुकी थी। लालू यादव की गैर मौजूदगी में सत्ता चलाने में राबड़ी देवी के भाई यानी लालू यादव के साले साधु यादव काफी अहम भूमिका निभा रहे थे। उस दौर के लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि कहने को तो साधु यादव महज एमएलसी और विधायक थे। मगर वास्तव में उस समय साधु यादव ही सरकार हुआ करते थे।

बड़े से बड़े अधिकारी साधु यादव के आगे-पीछे लगे रहते थे। क्योंकि गौतम सिंह तथा लालू यादव के परिवार वालों की आपसी जान पहचान काफी पुरानी थी. इस कारण गौतम सिंह को राजनीति में जगह बनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है और बहुत जल्द उसकी जान पहचान साधु यादव से हो जाती है. साधु यादव का करीबी होने की वजह से गौतम सिंह को तेजी से पार्टी में नयी पहचान मिलती रहती है.

गौतम सिंह साधू यादव के साथ मिलकर पटना के मशहूर frazer road में silver oak नाम का एक restaurant भी शुरू करता है यानी साधू यादव और गौतम सिंह business partner भी बन जाते हैं. शिल्पी जैन और गौतम सिंह दोनों ही पटना के थे तथा इन दोनों का संबंध रसूखदार परिवार से था.

एक दिन शिल्पी की मुलाकात गौतम से होती है और पहली ही मुलाकात में दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन जाते हैं और देखते ही देखते इन दोनों की दोस्ती प्यार में बदल जाती है। दोनों एक दूसरे को टूटकर चाहने लगते हैं और साथ रहने का भी प्लान करने लगते हैं। मगर इन दोनों का ये ख्वाब अधूरा रह जाता है। क्योंकि 3 जुलाई 1999 की रात शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाश गांधी मैदान थाने के अंतर्गत आने वाले एमएलए क्वार्टर के बंगला नंबर 12 के गैरेज में मौजूद मारुती जैन कार के अंदर मिलती है।

दो बड़े घर से वाले लड़के लड़कियों की मौत की खबर से पूरे Patna में सनसनी मच जाती है. हर कोई जानने को बेचैन हो जाता है कि आखिर इन दोनों की ये हालत किसने की है. जितना मुँह उतनी तरह की बातें सुनने को मिलने लगती है. मगर सच्चाई क्या थी कोई नहीं जानता था. वैसे तब क्या आज तक कोई नहीं जानता कि सच्चाई क्या थी. क्योंकि इन दोनों की लाश मिलने के तुरंत बाद Patna Police ने बिना किसी postmortem और viscera report के इन दोनों की मौत की वजह suicide को दिया था।

क्या सच में ऐसा ही था? शायद नहीं। क्योंकि पुलिस की थ्योरी से एक अलग ही चर्चा पटना की फिजाओं में तैर रही थी। चर्चा के मुताबिक 2 जुलाई 1999 को रोज की तरह शिल्पी जैन सुबह-सुबह अपने computer class जाने के लिए घर से निकलती हैं। घर से निकलते समय शिल्पी जैन ने एक सफेद रंग की कुर्ती पहनी हुई थी। घर से निकलने के बाद शिल्पी जैन एक रिक्शे पर बैठती हैं तथा अपने computer class की ओर निकल जाती हैं।

अभी शिल्पी जैन का रिक्शा कुछ ही दूर आगे गया था कि रास्ते में एक लड़का अपनी कार रिक्शे के आगे रोकता है और शिल्पी से पूछता है कि तुम कहां जा रही हो? उस लड़के को देखते ही शिल्पी जैन कहती है, कि मैं अपनी computer class की ओर जा रही हूँ, जवाब में लड़का कहता है, कि मैं भी उधर ही जा रहा हूँ, अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें तुम्हारे institute तक drop कर सकता हूँ. कथित तौर पर ये लड़का कोई और नहीं बल्कि गौतम सिंह का एक करीबी दोस्त ही था। जिसे शिल्पी जैन भी काफी अच्छे से जानती थी।

क्योंकि लड़का गौतम की जान पहचान का था और पहले भी कई बार शिल्पी से मिल चुका था। इसलिए शिल्पी रिक्शे वाले को किराया देकर रिक्शे से उतर जाती है और इस लड़के की कार में बैठ जाती है। कार कुछ देर तक तो शिल्पी जैन के कंप्यूटर institute की तरफ ही बढ़ती है। मगर कुछ आगे जाकर वो लड़का कार को एक दूसरे रास्ते की तरफ मोड़ देता है। कार जब दूसरे रास्ते पर मुड़ती है तो शिल्पी जैन लड़के से पूछती है कि इधर तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो? तो वो जवाब में कहता है कि हम अभी फुलवारी शरीफ की तरफ जाएंगे जहां वाल्मीकि गेस्ट हाउस में गौतम सिंह रुका हुआ है. वो तुमसे मिलना चाहता है।

जो लोग नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए बता दें कि फुलवारी शरीफ पटना से ही लगा हुआ शहर है. वैसे तो आज फुलवारी शरीफ पूरी तरीके से आबादी से भरा हुआ है। लेकिन 1990s के आसपास काफी सुनसान इलाका हुआ करता था। गाड़ी को दूसरे रास्ते पर मुड़ता देख पहले तो शिल्पी जैन घबराती हैं। मगर जैसे ही सुनती है कि guest house में गौतम सिंह मौजूद है शिल्पी बड़े आराम से लड़के के साथ जाने के लिए तैयार हो जाती है. जबकि सच्चाई तो ये थी कि उस guest house में गौतम सिंह मौजूद ही नहीं था.

कहीं से इस बात की जानकारी गौतम सिंह को थोड़ी देर बाद लग जाती है कि शिल्पी को एक लड़का कार से फुलवारी शरीफ के वाल्मीकि guest house में लेकर गया है। गौतम सिंह तुरंत परेशान हो जाता है और अपनी सफेद रंग की मारुति जेन कार निकालकर guest house की तरफ भागता है। गौतम सिंह के परेशान होने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि राजनीति में बेहद करीब से जुड़े होने की वजह से गौतम सिंह को अच्छे से मालूम था कि उन दिनों बाल्मीकि guest house बड़े-बड़े नेताओं का अय्याशी का अड्डा हुआ करता था।

अनहोनी की आशंकाओं से घिरा हुआ गौतम सिंह भागते हुए वाल्मीकि guest house तक आता है तो यहाँ देखता है कि शिल्पी एक कमरे में बंद है और उसके आसपास कई लोग मौजूद हैं जो उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं। ये सब देखकर गौतम सिंह भागता हुआ अंदर जाता है और वहाँ मौजूद लोगों को रोकने की कोशिश करता है. मगर वहां मौजूद लोग गौतम सिंह की एक भी नहीं सुनते हैं और उल्टा गौतम सिंह को मारने पीटने लगते हैं।

गौतम सिंह को मारने पीटने वाले लोगों में कोई दूसरे लोग नहीं थे बल्कि गौतम सिंह के ही बेहद करीबी जान पहचान वाले नेता थे। गौतम उन लोगों से रहम की भीख मांगता है। मगर वो लोग गौतम की एक नहीं सुनते हैं और फिर गौतम की अच्छे से पिटाई करने के बाद शिल्पी जैन के साथ बड़ी बेरहमी से दरिंदगी को अंजाम देते हैं।

शिल्पी के साथ को अंजाम देने के बाद वहां मौजूद लोग शिल्पी तथा गौतम की गला दबाकर हत्या कर देते हैं और फिर इन दोनों की लाश गौतम सिंह की ही गाड़ी में डाल देते हैं। फिर कार रातों-रात गांधी मैदान के पास लाकर एमएलए बंगले के garage में खड़ी कर दी जाती है।

इधर जब देर शाम तक शिल्पी घर वापस नहीं आती है तो उसके परिवार वाले शिल्पी के दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन करना शुरू कर देते हैं। शिल्पी की खोज में आदमी भी लगाए जाते हैं। मगर कहीं भी शिल्पी का अता पता नहीं चलता है। यहां तक की शाम हो जाती है और Shilpi घर वापस नहीं आती है. थक हार कर Shilpi के पिता स्थानीय थाने में जाकर बेटी के गायब होने की report भी दर्ज करवा देते है. कुछ ही समय बाद खबर आती है कि Gautam Singh भी गायब है.

इसी के बाद दोनों की तलाश शुरू हो जाती है. दिन भर इन लोगों की खोज होती रहती है. मगर कहीं से कोई अता पता नहीं चलता है. इस खोजबीन में कई घंटे बीत जाते हैं तभी अगले दिन यानी 3 जुलाई 1999 की रात 9 बजे के आसपास अचानक से police की एक team Gandhi Maidan थाने के अंतर्गत आने वाले MLA बंगला नंबर 12 के पास पहुंचती है और गैरेज को खोलती है तो गैरेज के अंदर पुलिस वालों को गौतम सिंह की वही सफेद रंग की मारुती जैन कार मिलती है, कार के अंदर की तलाशी लेने पर पता चलता है कि उस कार में शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाश है।

पुलिस के पहुंचने के कुछ ही देर बाद वहां पर लालू यादव के साले साधू यादव भी अपने समर्थकों के साथ पहुंच जाते हैं, हंगामा करने लगते हैं। इस बात का जवाब आज तक नहीं मिल पाया कि साधु यादव को इस बात की जानकारी किसने दी कि पुलिस को गैरेज से कार मिली है और फिर साधु यादव वहाँ आकर हंगामा क्यों कर रहे थे? इस रात से भी आज तक पर्दा नहीं उठ पाया कि पुलिस को किसने खबर दी कि गैरेज के अंदर कार है और इस कार में शिल्पी और गौतम की लाश है।

खैर घर से तो शिल्पी सफेद रंग की कुर्ती पहनकर निकली थी, मगर जब कार में उसकी लाश मिलती है, तो एक कपड़े के नाम पर उसके शरीर पर सिर्फ गौतम का टीशर्ट था, जबकि गौतम बिल्कुल नंगी अवस्था में था। तब इन दोनों की लाश को करीब से देखने वाले लोगों के मुताबिक लाश को देखकर पूरा अंदाजा हो रहा था कि इन दोनों को बड़ी ही बेरहमी से मारा गया है।

शिल्पी के शरीर पर जूतों से पिटाई के भी निशान थे। साधु यादव के समर्थकों के हंगामे के बीच पुलिस तुरंत इन दोनों की लाश को कब्जे में लेते हुए पोस्टमार्टम के लिए पीएमसीएच भेज देती है। ढंग से होना तो ये चाहिए था कि पुलिस वाले मौके पर ही कार से सबूत इकट्ठा करें या फिर कार को दूसरे क्रेन की मदद से खींचकर पुलिस थाने तक ले जाए।

मगर पटना पुलिस का एक कांस्टेबल उस कार को खुद ही चलाकर थाने तक लाता है। इस कारण कार की steering से अपराधी के fingerprint समेत कई अहम सबूत मिट जाते हैं। वैसे तो अक्सर पुलिस पर हर काम को काफी धीरे करने का आरोप लगता है। मगर शिल्पी जैन और गौतम सिंह के मामले में पटना पुलिस की एक अलग ही बेमिसाल तेजी देखने को मिलती है। अभी इन दोनों का postmortem और बिसरा रिपोर्ट आया भी नहीं था कि पुलिस वाले ऐलान कर देते हैं कि इन दोनों की मौत कार्बन monoxide गैस की वजह से दम घुटने से हुई है।

इधर रात के अंधेरे में ही दोनों का पोस्टमार्टम करवाया जाता है। गौतम सिंह के परिवार वाले अभी लंदन में ही थे. इसके बावजूद बिना उन लोगों की इजाजत के गौतम सिंह का अंतिम संस्कार रात के अंधेरे में ही पटना पुलिस द्वारा करवा दिया जाता है। इस अंतिम संस्कार में गौतम सिंह का कोई भी रिलेटिव शामिल नहीं हुआ था। आनन-फानन में अगली सुबह शिल्पी जैन का भी अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

अंतिम संस्कार के बाद जब PMCH से postmortem report आती है तो उसमें मौत का कारण स्पष्ट नहीं किया जाता है. हालांकि ये संभावना जरूर जताई जाती है कि इन दोनों की मौत जहर खाने से हुई है. अब Patna Police भी अपने पिछले बयान से पलटते हुए दावा करती है कि इन दोनों ने जहर खाकर आत्महत्या की है. Patna Police का दावा एक तरफ था दूसरी तरफ लोगों के बीच आम चर्चा ये चल रही थी कि पहले Shilpi Jain के साथ बर्बरता से शोषण किया गया है और फिर इन दोनों की हत्या की गयी.

Patna Police के रवैये की वजह से लोगों का गुस्सा बढ़ने लगता है और विपक्षी पार्टियां भी Rabri Devi सरकार को घेरने लगती है. Bihar सरकार पर आरोप लगाया जाता है कि चूँकि इस case का mastermind किसी और को नहीं बल्कि Rabri Devi के भाई Sadhu Yadav को ही बताया जा रहा है. इस कारण Patna Police और Bihar सरकार साधु यादव को ही बचाने के लिए सब कुछ कर रही है.

Bihar सरकार से मामले की जांच CBI से करवाने की मांग की जाने लगती है. पहले तो बिहार सरकार इस मांग पर कोई ध्यान नहीं देती है, मगर जब हंगामा बढ़ता है तो finally बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी इस घटना के दो महीने बाद यानी सितंबर महीने में मामले की जांच सीबीआई के हवाले कर देती है. इस मामले को अपने हाथ में लेते ही सीबीआई सबसे पहले शिल्पी जैन के vaginal fluid को जांच के लिए हैदराबाद के forensic लैब में भेजती है.

इसके अलावा फिर से हर पहलू की जाँच सीबीआई द्वारा की जाती है. कुछ समय बाद जब हैदराबाद के forensic lab से शिल्पी जैन की रिपोर्ट आती है, तो पटना पुलिस के दावे से उलट एक दूसरा दावा सामने आता है. forensic रिपोर्ट के मुताबिक Shilpi Jain के साथ एक से अधिक लोगों ने बलात्कार किया था. क्योंकि vaginal fluid में एक से अधिक लोगों के सीमेन मिले थे. इस report के आने के बाद अब CBI इस case के prime suspect Sadhu Yadav के DNA के जाँच की माँग करती है.

DNA जाँच से बिलकुल साफ हो सकता था कि Shilpi Jain के शरीर पर पाए गए semen किसके है. Sadhu Yadav से DNA जांच के लिए उनका blood sample माँगा जाता है. मगर Sadhu Yadav DNA जाँच से साफ इंकार कर देता है. कमाल की बात तो ये थी कि CBI इस मामले में आगे कानूनी मदद भी नहीं लेती है. अगर CBI चाहती तो अदालत में जाकर Sadhu Yadav को DNA sample देने के लिए मजबूर कर सकती थी. मगर CBI ऐसा कुछ नहीं करती है और finally 2003 में इस मामले में एक closure report पेश करती है.

court में CBI द्वारा कहा जाता है कि उसे जांच में कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला है बल्कि जांच से ये बिलकुल साफ है कि Shilpi Jain और Gautam Singh ने जहर खाकर ही आत्महत्या की है. मतलब CBI ने 4 साल के बाद वही report पेश की जो report कथित तौर पर Patna Police ने postmortem report आने से पहले लाश मिलते ही बनाई थी.

इसके बाद सवाल उठने लगता है कि अगर इन दोनों ने suicide किया है तो फिर Hyderabad के forensic lab की report के मुताबिक Shilpi Jain के शरीर पर जो एक से अधिक व्यक्ति के semen के sample मिले है वो कैसे आया. तो CBI की ओर से बेहद ही हैरान करने वाली दलील दी जाती है कि असल में वो semen नहीं बल्कि पसीना था.

इस तरह पहले police ने और फिर CBI ने इस पूरे मामले को आत्महत्या का रूप दे दिया और इस case की जांच बंद कर दी. Shilpi Jain के परिवार वालों ने CBI की इस जाँच को सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि CBI ने दबाव में आकर गलत report पेश की है. उनकी बेटी की हत्या हुई है.

आपने ये बातें शायद पहले कभी नहीं सुनी होंगी। लेकिन कुछ दावों के मुताबिक Gautam के पिता doctor V N Singh तथा Lalu Yadav का काफी करीबी रिश्ता था. आरोप तो यहाँ तक लगाए जाते है कि Lalu Yadav के मशहूर चारा घोटाले का पैसा हवाला के जरिए Swiss Bank तक पहुँचाने में V N Singh की भूमिका काफी अहम थी. Lalu परिवार के इतने करीब रहने वाले VN Singh के बेटे की जब रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी तब भी उन्होंने एक बार भी न्याय के लिए आवाज नहीं उठाई। कम से कम media में तो ऐसी एक भी report नहीं मिली जहाँ से ये बात सामने आयी हो कि Gautam के परिवार वालों की ओर से न्याय की मांग की गयी हो.

दूसरी तरफ शिल्पी जैन के परिवार वाले लगातार इस case की फिर से जांच करने की मांग करते रहे. यहाँ तक की 2006 में Shilpi Jain का भाई Prashant Jain इस मामले की फिर से जांच की मांग के लिए Supreme Court जाने की तैयारी करने लगा. अभी वो अपनी तैयारियों में लगा ही हुआ था कि अचानक से 6 जनवरी 2006 को जब Prashant Jain Budh Market स्थित अपने घर में दाखिल होने ही वाला था. तभी कुछ लोगों ने घर के दरवाज़े से उसका अपहरण कर लिया।

हालांकि अपहरण के 2 दिन बाद Prashant Jain को अपराधियों ने Patna और Hajipur को जोड़ने वाले महात्मा Gandhi सेतु पर छोड़ दिया। Prashant Jain सही सलामत घर वापस आ गए. इसके बाद उन्होंने दोबारा कभी भी इस case की फिर से जांच की मांग नहीं की और इस तरह Shilpi Jain तथा Gautam Singh की मृत्यु एक रहस्य बनकर रह गयी और जो भी prime suspect थे सभी आज भी चैन की जिंदगी जी रहे है.

भले ही police और CBI ने इसे एक आत्महत्या का case बता दिया। मगर आज तक police वाले कुछ सवालों के जवाब नहीं दे पाए कि अगर इन दोनों ने आत्महत्या ही की थी तो आखिर इन दोनों ने कपड़े उतार कर आत्महत्या क्यों की? अगर इन दोनों ने आत्महत्या की है तो आखिर शिल्पी जैन के शरीर पर जूतों के निशान कैसे आए?

जब साधु यादव ने अपना डीएनए सैंपल देने से मना कर दिया तो सीबीआई ने आगे कानूनी मदद क्यों नहीं ली? आखिर पुलिस को कैसे पता चला कि गैरेज के अंदर कार है और कार में दो लाशें हैं और फिर ये खबर साधु यादव तक कैसे गई? पुलिस ने postmortem करने में इतनी जल्दबाजी क्यों की और गौतम सिंह का अंतिम संस्कार इतनी जल्दी क्यों किया गया?

ऐसा नहीं है कि केवल police पर ही लापरवाही के आरोप लगे बल्कि CBI जांच के दौरान भी ये आरोप लगाया गया कि CBI ने कई अहम सबूतों को जानबूझकर नजरअंदाज किया है. इस तरह के दर्जनों सवाल है जिसका जवाब ना तो CBI दे पायी और ना ही police और बिना जवाबों के ये case अदालत की फाइलों में एक suicide case बनकर दबकर रह गया. इस पूरे case के बारे में आपकी क्या राय है comment box में जरूर बताएं।

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