Dog Training & Parenting: पेट्स हमारे परिवार का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं। खासकर डॉग्स, जिनके साथ हमारा खास रिश्ता होता है। लेकिन क्या हम उनके बिहेवियर को सही तरीके से समझते हैं? द एडी शो में डॉग बिहेवियर स्पेशलिस्ट संदीप लाड से बातचीत के दौरान कई जरूरी बातें सामने आईं जो हर पेट पेरेंट को जाननी चाहिए। चलिए विस्तार से उन पर बात करते हैं।
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Dog Training & Parenting
पेट पेरेंटिंग की शुरुआत
जब आप डॉग को घर लाने का फैसला करते हैं, तो यह सिर्फ एक पालतू जानवर लाने का नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा बनाने का निर्णय होता है। घर लाने से पहले इन बातों का ध्यान रखें:
- स्पेस की प्लानिंग करें: डॉग कहां रहेगा, खाना कहां मिलेगा, और सुसु-पोटी हैबिट्स सेट कहां होंगी।
- सही फूड दें: ब्रीडर जो फूड देता है, शुरुआती दिनों में वही जारी रखें।
- स्लीपिंग अरेंजमेंट: बेड, कैनल या डॉग बेड की सही व्यवस्था करें।
इस तैयारी से डॉग को नए माहौल में एडजस्ट करने में आसानी होगी।
कब शुरू करें ट्रेनिंग?
ट्रेनिंग का सही समय वही है जब डॉग घर आता है। हालांकि, गहन ट्रेनिंग 3-4 महीने की उम्र से शुरू होनी चाहिए। शुरुआती दिनों में तीन मुख्य बातों पर ध्यान दें:
- सुसु-पोटी हैबिट्स सेट करना:
- जैसे ही डॉग नींद से उठे, उसे तुरंत पी-पैड या बाहर ले जाएं।
- खाना खाने के बाद और खेलने के बाद, ध्यान दें कि वह कहां जाने की कोशिश कर रहा है।
- डिस्ट्रक्टिव बिहेवियर कंट्रोल:
- अगर डॉग जूतों, फर्नीचर या कार्पेट को चबाने की कोशिश करे, तो उसे चबाने के लिए च्यू स्टिक्स या टॉय दें।
- नेचुरल चीजें जैसे हरा नारियल भी अच्छा उपाय है।
- रूटीन सेट करें:
- डॉग के सोने-खाने का रूटीन सेट करें।
- कैनल ट्रेनिंग से डॉग को खुद को कम्फर्टेबल और सिक्योर फील कराने में मदद मिलेगी।
डॉग ट्रेनिंग के ज़रूरी स्टेप्स
डॉग की ट्रेनिंग सिर्फ उसे “सिट” और “कम” सिखाने तक सीमित नहीं है। यह एक गहरी प्रक्रिया है।
- नाम सिखाना: डॉग का नाम उसके लिए एक फ्रीक्वेंसी होती है। उसे यह नाम रिवॉर्ड के जरिए सिखाएं।
- पॉजिटिव रिइंफोर्समेंट: वह जब सही काम करे, तो उसे प्रोत्साहित करें। यह टॉय, फूड या पैटिंग के जरिए हो सकता है।
- नेगेटिव बिहेवियर कंट्रोल: गलत आदतों को सुधारने के लिए हल्के से प्रेशर का इस्तेमाल ट्रेनिंग के दौरान किया जा सकता है, लेकिन इसे ट्रेनर की देखरेख में ही करें।
परिवार की भूमिका
परिवार के सभी सदस्यों का डॉग की ट्रेनिंग में शामिल होना जरूरी है। यह सुनिश्चित करें कि हर सदस्य डॉग के रूटीन और नीतियों को समझे। अगर केवल एक या दो लोग सक्रिय रूप से जुड़े होंगे, तो जिम्मेदारी का असंतुलन पैदा हो सकता है।
- उन सदस्यों को प्राथमिकता दें जो डॉग के साथ ज्यादा समय बिताएंगे।
- पूरी फैमिली को डॉग के बिहेवियर ट्रेनिंग से संबंधित बेसिक जानकारी होनी चाहिए।
इंडी डॉग्स और उनके फायदे
संदीप लाड ने बताया कि इंडी डॉग्स यानी भारतीय मूल की नस्लें हमारी जलवायु और परिस्थितियों के लिए आदर्श होती हैं। उनके फायदे:
- वे कम मेंटेनेंस चाहते हैं।
- भारतीय मौसम के लिए अनुकूल होते हैं।
- उनकी हेल्थ आमतौर पर बेहतर रहती है।
सही ब्रीड और पेडिग्री का चुनाव
डॉग खरीदने से पहले उनकी ब्रीड और पेडिग्री को समझना जरूरी है।
- पेडिग्री क्या है? यह डॉग की जेनेटिक हिस्ट्री को दर्शाता है।
- ब्रीड का चयन: अपनी जरूरतों और परिवार के अनुसार सही ब्रीड चुनें।
सिर्फ प्रमाणित ब्रीडर्स से ही डॉग खरीदें ताकि आपको एक अच्छी पेडिग्री और सही जानकारी मिले।
बिहेवियरल ट्रेनिंग क्यों जरूरी है?
डॉग्स को केवल सिट-स्टे सिखाना काफी नहीं है।
- वे समाज में कैसे पेश आते हैं, यह महत्वपूर्ण है।
- उनकी सुरक्षा और दूसरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है।
- यह ओनर और डॉग के बीच बेहतर कम्युनिकेशन बनाता है।
डॉग्स के साथ रिश्ता और सीख
डॉग्स सिर्फ हमारे पालतू नहीं, बल्कि हमारे टीचर्स भी हैं। वे हमें भावनाओं को समझने, सहनशीलता और प्रतिबद्धता सिखाते हैं।
संदीप लाड जैसे विशेषज्ञ हमें इस कनेक्शन को बेहतर तरीके से समझने और गहराई में जुड़ने का मौका देते हैं।
निष्कर्ष
डॉग्स को ट्रेन करना सिर्फ एक टेक्नीक नहीं, बल्कि एक कमिटमेंट है। सही ट्रेनिंग उनके और हमारे रिश्ते को मजबूत बनाती है। एक खुशहाल, शांत और सेफ डॉग ही परिवार और सोसाइटी में अपनी जगह सही ढंग से बना सकता है।
क्या आपका डॉग ओबेडिएंट और बिहेव्ड है? सही ट्रेनिंग शुरू करें और अपने प्यारे साथी के साथ एक यादगार रिश्ता बनाएं।
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