India’s first private satellite: भारत भी अब स्पेस के क्षेत्र में अमेरिका की तरह वो सारे कार्य करने की स्थिति में आने लगेगा जो हमें कभी एलोन मस्क के स्पेस एक्स से सुनने को मिलते थे, कभी अमेज़न के जेफ्फ बेजोस से सुनने को मिलते थे और Virgin Galactic स्पेस एजेंसी द्वारा सुनने को मिलते थे. क्योंकि अब भारत को भी मिल चुकी है एक प्राइवेट कंपनी जो अपने ही रॉकेट से सैटेलाइट्स को लांच करेगी। आइये अब देखते हैं कि भारतीय स्पेस के क्षेत्र प्राइवेट प्लेयर्स के आने से क्या-क्या बदलाव आने वाला है.
रॉकेट क्या होता है?
मैं आपसे ये कहूं कि रॉकेट क्या है? तो रॉकेट क्या है? मान लीजिये जो एक पेन है लिखने वाला। ये पेन नहीं रॉकेट है और इसके ऊपर ये जो कैप सी लगी हुई है ना ये कैप ना होकर, यह यह एक पेलोड है. आप सब जानते होंगे राकेट कुछ इसी तर्ज पर आसमान में उडते हैं. अपने अंदर भरे हुए फ्यूल को जलाते जाते हैं जो इनके नीचे जलता हुआ दिखता है आसमान में पुंछ की तरह और इसके ऊपर जो पेलोड है इसे लेकर अंतरिक्ष में छोड़ आते हैं. सामान्यतः 100 किलोमीटर से ऊपर की ऊंचाई को हम अंतरिक्ष में कंसीडर करते हैं.
इंडिया में आप लोगों ने जिन रॉकेट्स का नाम सुना है उसमें एसएलवी, जीएसएलवी और पीएसएलवी का नाम आता है. यदि आपको ये दो चीजें याद आ रही हो तो आपको ये भी याद होगा कि हमारी स्पेस एजेंसी ISRO इन्हीं सैटेलाइटस लॉन्चिंग व्हीकल्स यानी की रॉकेट्स से अपना सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में भेजता है.
अब मैंने आपको पेन का उदहारण लिया था. मान लीजिये ये एक रॉकेट है. इसके ऊपर जो पेलोड रखा हुआ है. ये पेलोड का मतलब जिस सामान को ऊपर पहुँचाना है. वो पेलोड असल में सेटेलाइट भी हो सकता है, बॉम्ब भी हो सकता है. बॉम्ब के केस में आप इसे मिसाइल कह देते हैं.
ये जो रॉकेट है ना इस रॉकेट को अंतरिक्ष की भाषा में launching व्हीकल कहा जाता है. अब ये जो launching व्हीकल है, हमारे पास तो है सरकारी वाले, यानी इसरो वाले। लेकिन भारत ने अभी तक किसी प्राइवेट कंपनी को अपना launching व्हीकल use नहीं करने दिया। इसका मतलब समझ रहे हैं आप? इसका मतलब ये हुआ कि ये जो रॉकेट है ये किसी प्राइवेट व्यक्ति ने बनाया है.
क्योंकि अभी तक होता क्या था कि हम लोग जो पेलोड भरते थे, उस पे लोड के अंदर सेटेलाइट्स देश-दुनिया से मंगाकर डालते थे. मान लीजिए अमेरिका वाले ने भी हमसे कहा कि हमें आप अपना satellite भेजने के लिए जगह दे दीजिए, हमने उनका satellite छोड़ दिया, जापान ने कहा या फिर UAE ने कहा, जिस भी देश ने हमसे कहा हमने रॉकेट के ऊपर जो टोपा लगा रखा है, payload का उसमें उस satellite को बिठाया और जाकर अंतरिक्ष में छोड़ दिया। ये तो सामान्य प्रक्रिया है, जो हम अब तक करते आए हैं.
satellite तो हम कॉलेज के students के द्वारा भी बनाकर के अंतरिक्ष में भेजते आए हैं. लेकिन पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि इंडिया के अंदर किसी प्राइवेट कंपनी ने रॉकेट बनाया है. ये बहुत बड़ी बात है। मतलब आप इसको टेक्नोलॉजी की भाषा में अगर समझे तो ये अपने आप से किसी ने अपनी मिसाइल बना ली. ये बहुत ऐतिहासिक बात होने जा रही है. तारीखें भी डिस्कस हो चुकी है। या तो 12 नवंबर को या 16 नवंबर को ये रॉकेट लांच हो सकता है। आप बोलेंगे कौन लांच करेगा? क्या खुद के यहाँ से या जो श्री हरीकोटा जो इसरो का लॉन्चिंग स्टेशन है वहां से. वो खुद का है क्या? नहीं, इसरो से ये चीज ये प्राइवेट कंपनी borrow कर रहे हैं।
launching station यानी जहाँ से हम इसे उड़ाए या यूँ समझो फ्लाइट तो हमने बना ली लेकिन एयरपोर्ट वालों से एयर स्ट्रिप मांग ली कि आपके एयर स्ट्रिप पे से अपनी चीज उड़ाना चाहते हैं. तो श्री हरीकोटा के लॉन्चिंग स्टेशन से ये राकेट launch होगा यानी रॉकेट private होगा, satellite भी private होंगी और उड़ने वाली जो जगह जहाँ से अब राकेट उड़ाया जाएगा वो launching station जो है वो सरकारी है.
जिस प्रकार से अभी हम नासा और space X की कहानी सुनते आए हैं. private स्पेस एजेंसी में आप सामान्यतः नाम जिसका आजकल बहुत ज्यादा सुन रहे हैं वो Space X है और भी बहुत सारी कंपनियां है जैसे Blue Origin, अमेजॉन वालों की है. ऐसे ही वहां पर और जो कंपनी है वो private है.
अब आपको ये private कंपनी भी सुनाई देने लगेगी इंडिया की तरफ से जैसे इसरो, जैसे नासा, जैसे Space X, वैसे ही इंडिया का Sky Route और वो अपना रॉकेट जिसको उड़ा के ऊपर ले जा रही है उस रॉकेट का नाम है विक्रम एस. ये विक्रम एस के ऊपर सेटेलाइट रखकर अंतरिक्ष में भेजेंगे।
इंडिया का पहला प्राइवेट रॉकेट जो है वो लांच होने वाला है नवंबर 12 से 16 के बीच में. कंट्री का पहला privately developed रॉकेट विक्रम एस इसका नाम है. विक्रम एस जो नाम रखा गया है, इसका नाम विक्रम साराभाई को समर्पित है। विक्रम साराभाई जो कि भारत के अंतरिक्ष program है उसके संस्थापक हैं.
आइये कुछ तथ्यात्मक जानकारी देखते हैं. इस राकेट को श्री हरीकोटा के सॅटॅलाइट लॉन्चिंग स्टेशन के द्वारा छोड़ा जाएगा। इसका नाम विक्रम एस, महान एस्ट्रो साइंटिस्ट विक्रम साराभाई को समर्पित है. चन्द्रमा पर सॅटॅलाइट भेजने के लिए उस मिशन का नाम चंद्रयान मिशन रखा गया उसी तरीके से SKY ROUTE के इस मिशन का नाम “प्रारम्भ” रखा गया है.
अब ऐसा क्या आवश्यकता पड़ गई कि हमें इसरो के अलावा किसी प्राइवेट कंपनी को भी जगह देनी पड़ गई। और प्राइवेट कंपनी क्या कोई ये अडानी, अंबानी या फिर टाटा, बिरला इनके द्वारा बनायीं गयी है या ये स्टार्टअप्स हैं. आपको जानकर प्राउड फील होगा। ये स्टार्टअप्स हैं और इंडिया के स्पेस सेक्टर में बड़ी मात्रा में लगभग कंपनी आ चुकी है और ये सौ का आंकड़ा छूने जा रहे हैं.
अब आप पूछेंगे कि इन कंपनी की कमाई क्या होगी। इनका रेवेन्यू मॉडल ये है कि अब देश में जिस प्रकार से technical education बढ़ रहा है. अगर हम उन चीजों को ध्यान से देखें तो देश में आने वाले समय में लगभग 20 हजार स्माल सैटेलाइट भेजे जाने की संभावना है वो भी इस डेकेड में यानी कि 2030 तक भेजी जाएंगी। बात करें स्पेस एक्स की तो कुछ ही सालों में इससे ज्यादा लगभग 3500 satellite भेजेगा।
इंडिया के लिए बड़ा नंबर हो सकता है. लेकिन सेटेलाइट किसी की भी जाए वो सेटेलाइट भेजने के नाम पर पैसे देगा। यहाँ तक कहा रहा है कि यदि हमारे देश के अंदर इस प्रकार के स्टार्टअप को योगदान दिया जाए. सरकारी सहायता प्रदान की जाए तो जिस प्रकार से आज हम ओला, उबर, टैक्सी, फ्लाइट्स बुक करते हैं. ऐसे ही आने वाले समय में हम स्पेस सैटेलाइट्स भी बुक कर पाएंगे, यानी रॉकेट बुक कर पाएंगे कि भाई ये मेरा सेटेलाइट है. आप इसे प्लीज छोड़ देना इतने किलोमीटर ऊपर.
अब आप पूछेंगे इससे कोई सिक्योरिटी ब्रीच तो नहीं हो जाएगा। क्यों हो जाएगा भाई? आप फ्लाइट में बैठ केइधर से उधर नहीं जाते, उससे कोई सिक्योरिटी ब्रिच होता है? मुद्दा ये है कि अगर scientific उपयोग होगा तो देश की तरक्की होगी। आपके दिमाग में कुछ ideas आएँगे देश के अंदर काम करने के और चूँकि launching station सरकार ने अपने पास रखा हुआ है तो जो जाएगा वो पहले ही check हो के जाएगा। सरकार भी बेवकूफ नहीं है।