कैंपा कोला में क्या देखा अंबानी ने, ब्रैंड को खरीदने के पीछे क्या वजह हो सकती है? Reliance Campa Cola Deal will disrupt Indian FMCG Sector, Reliance Retail vs Amazon

Ambani-Campa-Cola-Amazon

Reliance Campa Cola Deal: आपकी सबसे favorite soft drink कौन सी है? Pepsi या फिर Coca-Cola? अब आप बोलोगे कि भला market में सिर्फ यही दो चीजें थोड़ी ना मिलती हैं. Market में तो इतनी सारी varieties available हैं.

पर क्या आपको पता है आप चाहे कोई भी soft drink उठा लो, काफी ज्यादा chances हैं कि वो ये दोनों brands के under ही fall करती होंगी. For example Mirinda, Mountain Dew और Seven Up, ये सभी products, PepsiCo कंपनी के हैं और वहीं Thums Up, Fanta, Sprite, Limca, Rimjhim या फिर Maza जैसी सॉफ्ट ड्रिंक्स कोका-कोला कंपनी द्वारा बनाया जाता हैं।

देखा जाए तो इंडिया में सॉफ्ट ड्रिंक्स का market एक तरह से आज एक duopoly बन के रह गया है। पर क्या हमेशा से ही इंडियन सॉफ्ट ड्रिंक्स मार्केट एक duopoly थी? जी नहीं और क्या कोई है जो कोका कोला और पेप्सिको जैसे giants को उनके ही गेम में challenge करने की हिम्मत कर पाएगा? बिल्कुल तो कौन है वो player और उसके क्या plans हैं? चलिए इसी को देखते हैं आज के इस स्टोरी में.

पहले समझते हैं कि इंडिया की सॉफ्ट् ड्रिंक्स मार्केट में पेप्सी और कोका कोला जैसे फॉरेन प्लेयर के बीच एक duopoly बन के कैसे रह गई?

1962 में लो सेल्स की वजह से पेप्सीको ने इंडिया से एग्जिट लेने का फैसला कर लिया था और कुछ ही सालों बाद इंडिया के उस समय के stringent rules ने कोका-कोला को भी उनके ऑपरेशन शटडाउन करने पे मजबूर कर दिया था.

लेकिन क्या आपको पता है? 1949 से लेकर 1977 तक कोका-कोला का कम्प्लीट डिस्ट्रीब्यूशन, मार्केटिंग और सेल्स का काम मुंबई के Pure Drink नाम की एक कंपनी संभालती थी. एक तरह से आप ये समझ सकते हैं कि इंडिया की सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री को एक अच्छा फिज देने में प्योर ड्रिंक्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

लेकिन जब मोरारजी देसाई की स्ट्रिक्ट बिजनेस पॉलिसीज के कारण कोका-कोला और आईबीएम जैसी अपने एम्प्लाइज के बारे में सोचते हुए प्योर ड्रिंक्स के मालिक चरणजीत सिंह ने एक इंडियन सॉफ्ट ड्रिंक प्रोडक्ट लॉन्च करने के बारे में सोचा और इस तरह जन्म हुआ की चहेती सॉफ्ट ड्रिंक केंपा कोला का और तो और आज पेप्सी के ऐड में दिखने वाले सलमान खान उस समय के केम्पा कोला के ब्रांड एम्बेसडर हुआ करते थे। बेहतरीन मार्केटिंग कैंपेन और मार्केट में कोका कोला के exit करने की वजह से बने बड़े गैप की वजह से इंडिया ने इस देशी प्रोडक्ट को दोनों हाथों से एक्सेप्ट कर लिया।

लेकिन धीरे-धीरे इस segment में players बढ़ते गए। उस समय market में double seven और gold spot जैसे brands भी enter करने लगे थे। in fact regions के हिसाब से भी इन brands का domination माना जाता था। जैसे कि नॉर्थ में mainly Campa Cola का market था। जबकि western regions में गुजरात के सूरत बेस ब्रांड sosyo dominate करती थी। और साउथ में buvanto, citra, बिंदु जैसे brand डोमिनेट करते थे.

इसके साथ 1991 के रिफॉर्म्स के पहले ही इंडिया में एक अलग ही लेवल का कोला वॉर स्टार्ट हो चुका था। उस समय के प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी की देख-रेख में पेप्सी इंडियन मार्केट में दोबारा entry करने का ट्राई कर रही थी. हालांकि मल्टीनेशनल ब्रांड्स का इंडिया में वापिस एंटर होना एक catwalk नहीं था इन्हें thums up के co owner प्रकाश चौहान और दूसरे लोगों से स्ट्रोंग रेजिस्टेंस मिल रहा था। जो आगे जाकर एक नेशनल कॉन्ट्रोवर्सी भी बन गई थी. इसके बावजूद पंजाब के साथ एक joint venture में पेप्सीको ने इंडिया में लहर पेप्सी के नाम से एंट्री आखिर कर ही ली और 1991 के iconic reforms के बाद जब इंडिया ने अपनी market दुनिया के players के लिए open कर दी तब पेप्सीको और कोका-कोला ने इंडिया में फिर से एक धमाकेदार एंट्री ली।

इसी के साथ इंडियन सॉफ्ट ड्रिंक्स की fizz वापस से गायब होने लगी। कोका-कोला ने थम्स अप, लिम्का, सीट्रा और गोल्ड स्पॉट जैसे ब्रांड्स को आते ही कुछ सालो में acquire कर लिया था। इंडियंस की सबसे favourite सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड केम्पा-कोला ने इन giants को कड़ी टक्कर तो दी लेकिन 2000 के शुरुआत में कंपनी को उनके दिल्ली के bottling plants बंद करने पड़ गए और ऐसे करते-करते कुछ ही सालों में इंडियन सॉफ्ट ड्रिंक्स मार्केट एक duopoly बनकर रह गई। जहाँ आज national level पर सॉफ्ट ड्रिंक्स का मार्केट mostly कोका-कोला और पेप्सी lead कर रहे हैं।

लेकिन क्या आप turn around में विश्वास रखते हैं? अगर नहीं तो शायद आज हो जाएगा। क्योंकि ऐसा ही कुछ इंडिया की सॉफ्ट ड्रिंक्स मार्केट में हो रहा है एक बड़े प्लेयर की एंट्री के साथ। मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज इंडिया की सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में एंटर कर चुकी है. गेस करिए कैसे? केम्पा-कोला की एंट्री के साथ.

जी हाँ, रिलायंस ने केम्पा, कोला को एक्वायर कर लिया है और जिओ के केस में तो हम सब ने देखा ही है कि रिलायंस जिस भी सेगमेंट में एंट्री लेता है, उसे disrupt करने के माइंडसेट के साथ ही आता है. पर कोला वॉर टेलीकॉम से काफी अलग है. यहाँ रिलायंस को ऐसे ब्रांड से लड़ना होगा, जो पिछले कई दशकों से इस इंडस्ट्री में अपने पंख पसारे बैठे हैं.

लेकिन रिलायंस आखिर कैम्पा कोला के acquisition के साथ करना क्या चाहता है? हमारा ये समझना भी काफी ज्यादा जरूरी है. रिलायंस ने सॉफ्ट ड्रिंक के केस में इंडिया के पुराने लोकल ब्रांड को लेकर कोका-कोला और पेप्सी को उनके ही गेम में ही चैलेंज करने का प्लान बनाया है.

जी हाँ, सिर्फ कैम्पा कोला ही ऐसा ब्रांड नहीं है जो रिलायंस ने acquire किया है. गुजरात के sosyo के साथ भी डील टेबल पर है. इंडिया में पेप्सीको और कोका कोला की starring presence होने के बावजूद सोस्यो ने गुजरात में whooping 30% का शेयर बनाए रखा है. इसका मतलब रिलायंस अपने strategic acquisition से ना सिर्फ इन बड़े brands को एक अच्छी फाइट दे पाएगा बल्कि पुराने और लोकल ब्रांड्स को रिवाइव करके आज वो हमें nostalgia भी महसूस करवा रहा है।

इन दो ब्रांड्स के अलावा भी रिलायंस दूसरे meaningful acquisitions के लिए पूरी तरह से तैयार है। अम्बानी ने कर्नाटका की बिंदु सॉफ्ट ड्रिंक को भी acquire करने का ट्राई किया था। लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार कंपनी के owner ने अभी तक इस ऑफर को accept नहीं किया है। बिंदु को पहले विप्रो और कोका-कोला ने भी acquire करने की कोशिश की थी। लेकिन बिंदु कंपनी ने वो ऑफर्स एक्सेप्ट नहीं किए थे। लेकिन एक बात तो साफ है रिलायंस इन acquisitions के साथ एक देसी, लोकल और इमोशनल सॉफ्ट ड्रिंक सेगमेंट क्रिएट करने की कोशिश कर रहा है।

लेकिन कुछ अजीब नहीं लग रहा, रिलायंस जैसा ब्रांड अचानक से कोला के बिजनेस में और देखने वाली बात तो ये भी है कि अगर रिलायंस acquisitions कर रहा है, तो क्या वो सिर्फ सॉफ्ट ड्रिंक्स और कोला कंपनीज पर रुक जाएगा या फिर इन सबसे आगे भी उनका कुछ प्लान है।

रिलायंस अपने रिलायंस रिटेल बिज़नेस के थ्रू इंडियन FMCG के 110 बिलियन डॉलर्स वर्थ के मार्किट को tap करने जा रहा है. यहीं नहीं 2025 तक ये मार्किट ऑलमोस्ट डबल हो सकती है. अब तो आप समझ ही गए होंगे की इन सॉफ्ट ड्रिंक कम्पनीज के acquisition के पीछे क्या वजह हो सकती है. रिलायंस सिर्फ सॉफ्ट ड्रिंक या कोला बिजनेस में ही नहीं बल्कि उससे भी बड़ी अपॉर्चुनिटी की तरफ देख रहा है.

इंडियन एफएमसीजी सेक्टर के कई ब्रांड लेवल्स जैसे कि गुड लाइफ, बेस्ट फार्म्स के राइस और दूसरे ग्रेन्स स्नैक टेक्स, स्नैक्स, क्लीमा कॉस्मेटिक्स और या फिजिक ड्रिंक्स को ओन करती है. जो सिर्फ रिलायंस रिटेल स्टोर्स और जिओ मार्ट प्लेटफॉर्म पर available है. इन सब के अलावा भी कंपनी अपनी huge capital base का फायदा उठाना चाहती है और कई दूसरे brands को acquire करके एक स्ट्रांग एंड हाउस प्रोडक्ट पोर्टफोलियो क्रिएट करने में लगी हुई है.

मीडिया ने रिलायंस के इस मूव को एक और जियो मूवमेंट या जिओ 2.0 जैसे नाम देना शुरू कर दिया है.और हो भी क्यों ना? रिलायंस ने पूरी इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया था। वहीं कुछ एक्सपर्ट इसे जिओ movement की जगह निर्मम moment कहना पसंद कर रहे हैं। दरअसल बात भी सही है। telecom सेक्टर और एफएमसीजी इंडस्ट्री के हालात काफी ज्यादा अलग हैं। telecom इंडस्ट्री के केस में काफी कंपनीज बहुत ज्यादा कर्जे में थी और उनके पास required technology भी नहीं थी। इसके चलते जब जिओ ने अपनी highly competitive प्लान्स के साथ मार्केट में enter किया तो ना सिर्फ उसने बाकी telecom players को झटका दिया बल्कि काफी telecom players को market से ही exit लेने पर मजबूर कर दिया। लेकिन
एफएमसीजी सेक्टर के already कई established और डीप पाकेटेड players हैं।

वहीं बात करें एक और प्रोडक्ट निरमा की तो late nineties में जब निरमा ने market में एंट्री ली थी तो निरमा को इंडिया के एफएमसीजी giants जैसे कि एचयूएल और पीएनजी से एक टफ fight मिलने वाली थी लेकिन निरमा ने अपने डिटर्जेंट products market से seventy five percent cheaper rates पर launch किए। इससे ना सिर्फ निरमा अपने competitors को पीछे धकेल कर आगे निकल पाया बल्कि एचयूएल और पीएनजी को भी saste प्रोडक्ट लॉन्च करने मजबूर कर दिया।

निरमा की इसी strategy का नतीजा था कि hul को market में wheel launch करना पड़ा। अब इससे हमें ये पता चला कि price cuts के साथ आप market share तो capture कर सकते हो। लेकिन ये deep pocketed एफएमसीजी companies अपना रास्ता निकाल ही लेती हैं। हाँ समय जरूर लगा लेकिन hul ने अपना market share वापस हासिल करना शुरू कर दिया।

in fact recently जब पतंजलि ने अपनी unique आयुर्वेदिक theme के साथ एफएमसीजी market में disruptive एंट्री ली थी. तब hul ने उस समय भी इस चीज का जवाब दिया था। पतंजलि के टूथपेस्ट के सामने कुछ ही समय में एचयूएल ने आयुष लीवर लांच कर दिया था। मतलब एफएमसीजी सेक्टर में सिर्फ अगर आप प्राइस कट करके मार्केट शेयर हासिल करने के बारे में सोच रहे हैं तो उससे काम नहीं चलने वाला और ना सिर्फ एक यूनिक आइडिया से आप लोगों का दिल जीत पाएंगे। क्योंकि आखिरकार कस्टमर लॉयल्टी नाम की भी कोई चीज होती है। जो ये एस्टेब्लिश एमएनसी कंपनीज एंजॉय करती हैं.

लेकिन यहाँ आकर चीजें इंटरेस्टिंग होती हैं। रिलायंस के पास एक ऐसा अस्त्र है, जो बाकी सारे प्लेयर्स के पास शायद नहीं है, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क. रिलायंस के पास आज सिक्सटीन 1000 से भी ज्यादा का स्टोर काउंट है. रिलायंस रिटेल आज वर्ल्ड में फास्टर्स ग्रोइंग रिटेलर माना जाता है. टॉप ग्लोबल रिटेलर्स की लिस्ट में कंपनी 56 नंबर पे है. इस लिस्ट में सिर्फ रिलायंस रिटेल ही एक इंडियन कंपनी है जो टॉप 100 में है. अब रिलायंस रिटेल का नाम आपने सुना हुआ है. लेकिन चलिए अब रिलायंस रिटेल के कुछ पॉपुलर ब्रांड्स देखते हैं. जो मैं और आप अक्सर डेली बेसिस पर एनकाउंटर करते हैं. रिलायंस फ्रेश, रिलायंस स्मार्ट, स्मार्ट पॉइंट, रिलायंस डिजिटल, ट्रेंड्स रिलायंस ज्वेल्स और भी कई. रिलायंस के brands की list छोटी नहीं है. आज रिलायंस retail 7000 से भी ज्यादा cities में available है और यही है Reliance का सबसे बड़ा strong point.

सिर्फ यहीं नहीं रिलायंस रिटेल के अंदर और एक इम्पोर्टेन्ट सेगमेंट है जिओ मार्ट जो इनका ecommerce वेंचर है. अब आप फिर से बोलोगे की ecommerce में कोई भी भला अमेज़न को beat कर पाए, ये पॉसिबल है ही नहीं। अब एक ecommerce business इसलिए इम्पोर्टेन्ट होती है, उनकी सप्लाई चैन. Amazon भले ही इस बिजनेस में इतने सालो से है. लेकिन आज भी अमेजन के पास सिर्फ 60 के around warehouses मौजूद हैं. लेकिन जैसा कि हमने देखा रिलायंस के पास already 1600 से भी ज्यादा रिटेल स्टोर्स के फॉर्म में एक तरह से micro warehouses हैं जो देश भर में 7000 से भी ज्यादा cities में available हैं।

अगर आपको याद होगा तो कुछ समय पहले ही रिलायंस ने अपना मर्चेंट पार्टनर इनीशिएटिव भी लॉन्च किया था. इस इनीशिएटिव के द्वारा रिलायंस बेसिकली लोकल किराना स्टोर्स और वेंडर्स के साथ पार्टनरशिप करेगा. अभी तक कंपनी around 20 लाख वेंडर्स और लोकल ग्रोसरी स्टोर्स वालों के साथ पार्टनरशिप कर चुकी है और हर महीने वो around 1.5 लाख न्यू पार्टनर्स को अपने प्लेटफार्म पर ऐड कर रहे हैं. रिलायंस का प्रेजेंट टारगेट है एक करोड़ मर्चेंट्स यानी कि लोकल होलसेलर्स और रिटेलर्स के साथ पार्टनरशिप करना. इसके जरिए कंपनी 7500 towns और 5 लाख villages को अगले पाँच साल में करने की कोशिश करेगी। strong distribution network के माध्यम से जिओ मार्ट कई सारे लोकेशंस पर शायद अमेजॉन से भी कम टाइम में delivery दे पाएगा। in fact जिओ मार्ट के strong supply chain और data driven operations की वजह से कंपनी काफी profitable भी साबित हो रही है। जबकि दूसरी तरफ अमेजॉन इंडिया अभी भी losses को reduce करने की कोशिश करे जा रही है।

लेकिन आप कहोगे कि अगर supply chain ही सब कुछ है तो अमेजॉन भी तो एक deep pocketed corporation है। वो तो Reliance से भी ज्यादा warehouses पूरे देश में बना सकती है। तो यहाँ एक और ट्विस्ट है। इंडियन गवर्नमेंट के कई स्ट्रिक्ट regulations की वजह से इंटरनेशनल companies को इंडिया में एक strong distribution network establish करने में काफी हर्डल फेस करने पड़ते हैं और यही रिलायंस को अमेजन के ऊपर एक और competitive age मिल जाता है।

कैम्पा कोला और सोस्यो जैसे potential इनकम generate करने वाले brands के acquisition के साथ रिलायंस आज ना सिर्फ पेप्सीको और कोका-कोला को challenge कर रहा है बल्कि वो अपने strong supply chain और data driven operations का उपयोग करके कोला सेगमेंट के जरिए indirectly एक एफएमसीजी वॉर भी declare कर रहा है। ये war लेकिन कौन जीतेगा? शायद कोई नहीं! लेकिन इसमें जीत हम और आप जैसे customers की जरूर होगी क्योंकि हमें बहुत सारे प्रोडक्ट्स जरूर सस्ते दामों पर कुछ समय के लिए जरूर मिलने शुरू होंगे। comments में जरूर बताइए कि आपको ये स्टोरी कैसा लगा?

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