सहारा इंडिया स्कैम क्या है? Sahara India Scam Story, Subrato Roy Sahara Downfall

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Sahara India Scam Story: साल 1978 में सिर्फ 2000 रूपए से शुरुआत करने वाली सहारा देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी हुआ करती थी. जिसके 11 लाख से भी ज्यादा employees थे। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि अरबों रुपए का साम्राज्य खड़ा करने वाले सुब्रत राय सलाखों के पीछे पहुंच गए और क्या है वो सहारा स्कैम जिसने देश के 13 करोड़ लोग यानी कि भारत के लगभग 11% आबादी के साथ धोखा किया। चलिए सब कुछ जानते हैं विस्तार से।

सहारा के बारे में कहा जाता है कि ये एक ऐसी कंपनी थी जो इंडियन रेलवे के बाद इंडिया में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देती थी और इस कंपनी की शुरुआत हुई गोरखपुर के एक छोटी सी जगह से. स्टार्टिंग में सहारा के मालिक सुब्रत रॉय सहारा अपने स्कूटर पर स्नैक्स बेचने का काम किया करते थे और उसी काम को करने के दौरान उनकी जान पहचान छोटे दुकानदारों, गरीब तबके के लोगों या सब्जियां बेचने वालों से हुई और उन्होंने देखा कि कैसे ये लोग हर दिन जो भी कमाते हैं वो सारा खर्चा हो जाता है और इनके लिए कम पैसों में सेविंग्स करना कितना मुश्किल है.

Sahara India Scam Story

और फिर इन्हीं लोगों को ही सहारा देने के लिए सहारा कंपनी की नींव रखी गई. इस कंपनी ने लोगों को सुझाव दिया कि वो हर रोज कुछ रुपया उनके पास जमा कर दें. बाद में सहारा उन्हें अच्छे इंटरेस्ट के साथ पैसे लौटाएगी. लोगों को कंपनी का यह मॉडल बहुत पसंद आया और देखते ही देखते सहारा लोगों का ट्रस्ट जीतने में सफल हो गई.

अब इस कंपनी में पैसा invest करने वाला हर investor कई और दूसरे investors को भी इस group में जोड़ता गया और इस तरह काफी स्पीड से सहारा से 13 करोड़ लोग जुड़ गए। सुब्रत रॉय अपनी कंपनी से जुड़े सारे लोगों को अपना परिवार कहते थे और वो समाज को बेहतर बनाने में हर तरह से अपना योगदान दिया करते थे। चाहे वो गरीब लड़कियों की शादी कराना हुआ या फिर alcohol free environment बनाने की खातिर जगह-जगह पर campaign चलाना हुआ और दोस्तों इन सभी कदम से उन्होंने गरीब परिवार से लेकर middle class तक har किसी के बीच एक पॉजिटिव इमेज बना ली और वो भारत में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले लोगों में से एक बन गए थे.

सिर्फ 2000 रुपए में शुरू होने वाला एक छोटा सा बिजनेस धीरे-धीरे फाइनेंस, रियल स्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर, हेल्थ केयर, मीडिया एंड एंटरटेनमेंट, हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से लेकर कई सारे और सेक्टर्स तक फैल गई थी. सहारा ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 4400 करोड़ रुपए खर्च करके दो बेहद luxurious होटल न्यूयॉर्क प्लाजा और ड्रीम न्यूयॉर्क खरीदे। जो आज भी दुनिया के सबसे popular hotels में से एक है। इसके अलावा सुब्रत रॉय के पास मुंबई के वर्सोवा में 106 एकड़ जमीन, लखनऊ में 191 एकड़ और देश के 10 अलग-अलग शहरों में 764 एकड़ जमीन हो गई थी।

साथ ही इन्होंने खुद की एक आईपीएल टीम पुणे warriors भी बनाई और इंडियन क्रिकेट टीम के साथ-साथ इंडियन हॉकी टीम को भी कई सालों तक स्पोंसर करते रहे। लेकिन इन सब में जो चीज सबसे ज्यादा हैरान करने वाली थी वो थी इनकी सहारा सिटी। जी हाँ इन्होंने एक पूरा शहर बना दिया था इसमें हर तरह की लग्जरी सुविधाएं मौजूद थी जैसे क्रिकेट स्टेडियम, हेलीपैड, गोल्फ कोर्स, 11 किलोमीटर की एक लेक, 124 सीटर सिनेमा थिएटर के साथ-साथ हेल्थ सेंटर और कई सारे पेट्रोल पंप लगभग हर तरह की सुविधा जो एक बेहतरीन और developed city में होनी चाहिए, वो सहारा city में मौजूद थी.

इसके अलावा सुब्रत रॉय ने मुंबई से मात्र 2 घंटे की दूरी पर अंबे वैली सिटी नाम की एक टाउनशिप भी develop की जो कि दस हजार छह सौ एकड़ में फैली हुई है और इस town में करीब 800 ऐसे luxury बेंगलो हैं जिनकी कीमत 5 से लेकर 20 करोड रुपए के बीच में है। यहाँ तीन man made लेक्स बनाई गई है. इसके अलावा कई luxury रेस्टोरेंट। 1300 यार्ड्स के एयरपोर्ट और मूवी हॉल के जैसे कई तरह की हाई क्लास facility इस टाउन में available कराई गई थी।

दोस्तों उस टाइम सुब्रत रॉय बड़े-बड़े पॉलिटिशियन, फिल्म स्टार और देश के पावरफुल लोगों के बीच काफी फेमस थे और उनसे उनके काफी अच्छे relations हुआ करते थे। इसलिए इस एम्पायर को खड़ा करने में उनका भी काफी सपोर्ट मिला। लेकिन फिर सहारा पर पहली बार मुसीबत साल 1996 में तब आई जब एक इनकम टैक्स ऑफिसर की नजर इस ग्रुप पर पड़ी और उसने कंपनी में आने वाले हर पैसे का हिसाब मांगना शुरू कर दिया। उस समय सुब्रत रॉय ने कुछ फेमस नेताओं का नाम लिया और कहा कि कंपनी में पैसे इन्हीं लोगों के through आते हैं। अब अपना नाम आने पर नेताओं को expose होने का डर लगने लगा. इसलिए उस इनकम टैक्स ऑफिसर का ही ट्रांसफर करा दिया गया और दोस्तों इस तरह से सहारा पर आया ये पहला खतरा टल गया और कंपनी वापस से पहले की तरह ही काम करने लगी।

हालांकि आगे चलकर एक टाइम ऐसा भी आया जब मार्केट saturate हो गई और अब सहारा में invest करने वाले लोगों की संख्या एक जगह पर जाकर थम-सी गई। क्योंकि जो लोग सहारा में invest करने में interest रखते थे उनकी संख्या लगभग पूरी हो चुकी थी और यहाँ से वो लोग ज्यादा होने लगे जिन्हें अपने invest किए हुए पैसे निकालने थे। इस तरह थोड़े ही समय में कंपनी पैसे की तंगी से गुजरने लगी।

अब ऐसे में इस problem से निकलने के लिए सुब्रत राय ने कंपनी का आईपीओ लाने के बारे में सोचा और बस यहीं से कंपनी और रॉय के बुरे दिन शुरू हो गए। actually 30 सितंबर 2009 को उनकी कंपनी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में डीआरएचपी दाखिल किया। basically डीआरएचपी एक तरह से कहा जाए तो कंपनी का bio data होता है जिसमें उससे जुड़ी सारी अहम जानकारियां mention की गई होती है। जिसकी जाँच के बाद अगर सब कुछ ठीक रहा तो फिर सेबी कंपनी को आईपीओ लाने का permission देती है। अब जब सेबी ने सहारा के डीआरएचपी को पढ़ा तो फिर उसे इसकी दो companies सहारा इंडिया real estate corporation limited और सहारा housing corporation limited की पैसे जुटाने की process में कुछ गड़बड़ी दिखाई दी और इसी दौरान 25 दिसंबर 2009 और 4 जनवरी 2010 को सेबी को दो शिकायतें भी मिली जिसमें बताया गया कि सहारा गलत तरीके से लोगों से पैसे जुटा रही है और इन शिकायतों से सेबी का शक और बढ़ गया और उसने इन दोनों companies की जाँच शुरू कर दी.

सेबी ने अपनी जाँच में पाया कि इन दोनों companies ने OFCD के जरिए दो से ढाई करोड़ investors के करीब चौबीस हजार करोड़ रूपए लिए है. OFCD यानी optionally fully convertable deveentures. अब जो लोग नहीं समझते उन्हें हम बता दें कि ये एक तरह का debt सिक्योरिटी होती है जिसमें OFCD period खत्म होने के बाद investors को एक option दिया जाता है कि अगर वो चाहे तो अपने पूरे पैसे interest के साथ वापस ले सकते हैं या फिर उन पूरे पैसों से कंपनी के shares खरीद सकते हैं।

अब ओएफसीडी issue करने के भी कुछ नियम होते हैं. जैसे कि अगर कोई company पचास से कम लोगों के लिए OFCD issue करती है तो फिर उसे इसके लिए company registrar से permission लेनी पड़ती है। लेकिन अगर वो पचास से ज्यादा लोगों के लिए OFCD issue करती है तो फिर वहाँ उसे SEBI से permission लेनी पड़ेगी। लेकिन दोस्तों Sahara ने तो SEBI से इस बारे में कभी permission ही नहीं ली और illegal तरीके से OFCD के जरिए लोगों से पैसे जुटाती रही.

जिसके बाद SEBI ने Sahara के इन दोनों companies को investors के पैसे पंद्रह percent interest के साथ वापस करने का आदेश दिया। अब दोस्तों Sahara इस order से इंकार करते हुए SEBI की शिकायत करने Allahabad court पहुँच गया. लेकिन High Court ने भी SEBI के ही फैसले का समर्तन किया और सहारा को सारे investors के पैसे लौटाने को कहा। अब high court से भी राहत ना मिलने पर सहारा को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जब सहारा से उनके जुटाए गए फंड के source के बारे में सबूत मांगे तो फिर सहारा सुप्रीम कोर्ट को भी कोई सटीक जवाब नहीं दे पाया। जिसके बाद अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके दोनों companies को सेबी के साथ मिलकर investors का पैसा 3 महीने के अंदर पंद्रह percent interest के साथ चुकाने के लिए कहा।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आर्डर में ये भी कहा गया कि सहारा सेबी को सारे OFCD holders की details provide करें और दोस्तों सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए सहारा 127 ट्रक से भरे कागज लेकर सेबी के ऑफिस पहुँच गया. जिनमें investors की details मौजूद थी. लेकिन दोस्तों इन files में भी सभी investors की जानकारी नहीं थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट और सेबी दोनों ही इस मामले को money laundering की तरह लेने लगे। इसके अलावा सहारा को तीन महीने के अंदर-अंदर तीन installment में पंद्रह percent interest के साथ सारे पैसे sebi को देने थे पर कंपनी ने 5120 करोड़ रुपए की अपनी पहली किस्त तो जमा कर दी. लेकिन वो बाकी के installment जमा करने में नाकाम रहे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया के बैंक अकाउंट और assets को freeze करना शुरू कर दिया और 26 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

हालांकि मई 2016 में उनकी माँ की death हो गई जिसकी वजह से वो payroll पर बाहर निकल आए और उसके बाद से वो आज तक बाहर हैं। अब सहारा के द्वारा पहले installment में जमा किए गए पाँच हजार एक सौ बीस करोड़ रुपए में सेबी सहारा इंडिया के investors को अब तक सिर्फ एक सौ अड़तीस करोड़ रूपए ही लौटा पाया है और बाकी के पैसे अभी तक कई सालों से उसी के पास जमा है।

अब दोस्तों सेबी investors को उनके पैसे क्यों नहीं लौटा रहा है? इसके पीछे की वजह ये है कि document और record में investors का data trace ही नहीं हो पा रहा है। अब दोस्तों हालात ये है कि ना ही सेबी investors को पैसे लौटा पा रही है और ना ही सहारा बाकी के पैसे और सेबी को document को दे रहा है. अब यहाँ सहारा group का कहना है कि उसने SEBI को बाईस हज़ार करोड़ रुपए जमा करा दिए हैं. लेकिन SEBI कहता है कि Sahara द्वारा लौटाए गए पैसों से related कोई भी document उनके पास नहीं है और इस तरह से ये सारा मामला बीच में ही लटका पड़ा है.

अब देखना ये है कि सरकार सहारा के बेसहारा investors के हित में कोई ठोस कदम उठा पाती है या फिर नहीं। वैसे आप इस scam के बारे में क्या सोचते है अपना जवाब हमें जरूर दें.

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