भारत में जाति आधारित आरक्षण सफल है या असफल, जाति आधारित आरक्षण की असली सच्चाई, Shocking Reality of Caste Based Reservation in India

Shocking Reality of Caste Based Reservation in India

Shocking Reality of Caste Based Reservation: Reservation एक ऐसा controversial topic है जिस पे आए दिन लोग आपको बहस करते हुए मिल जाएंगे। specially election के time पे ये बहस जो है वो और तेज हो जाती है। अब कुछ लोगों का मानना है कि financial status देख के reservation देना चाहिए और ये जो caste based reservation है, ये हटा देना चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं कि अगर 70 सालो से backward लोगों का status नहीं सुधार पाया। तो इसका मतलब कि ये जो tool है ये काम का नहीं है। वहीं कुछ लोग ये भी कहते हैं कि हमारे पुरखों ने जो गलतियां की हैं. उसकी सजा हमें क्यों मिले?

सब अपने हिसाब से अपना-अपना मन बनाकर इस topic पर बात करते हैं। कुल मिलाकर जिसको reservation मिलता है वो इसके सपोर्ट में बहस करता है और जिसको नहीं मिलता है वो ज्यादातर इसके against में बात करता है।

आप अपने आस-पास notice करोगे तो आपको यही pattern मिलेगा mostly. अब देखिए, अगर already कुछ मन बनाकर आप ये स्टोरी पढ़ेंगे तो मुझे पता है, फिर तो आप hurt होंगे ही क्योंकि इसमें मैं काफी controversial चीजें discuss करने वाला हूँ. लेकिन मेरी intention इसके पीछे बस इतनी है कि जब हम reservation के बारे में बात करें तो हमारे पास इसकी सही details हो।

व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के fake propaganda वाली न्यूज़ ना हो। जो information available है उसको ले के मैं कुछ logics और facts आपके सामने रखूंगा ताकि आप अपनी सोच बना सको। इससे पहले कि हम reservation discuss करें, कुछ डेटा डिस्कस करना ज्यादा जरूरी है। ताकि actual ग्राउंड reality क्या है? वो समझने में आसानी हो।

Shocking Reality of Caste Based Reservation in India

Shocking Reality of Caste Based Reservation

देखिए इंडिया की total population 2011 के सेंसस के हिसाब से 121 करोड़ है। जिसमें से 20 करोड़ एससी है और 10 करोड़ एसटी है यानी कि एससी की पॉपुलेशन 16.63% है, टोटल पॉपुलेशन की और एसटी की पॉपुलेशन 8.61% हुई। ओबीसी के डाटा को लेकर काफी controversy है, वो अभी आगे समझ में आ जाएगा।

लेकिन मंडल कमीशन के हिसाब से ओबीसी की जो total population है वो 52% है और एनएसएसओ के सर्वे के हिसाब से 41% है। तो मोटा-मोटी available data से हम ये अंदाजा लगा सकते हैं कि total population में around 75% backward class हैं और बाकी जो बचे हैं वो 25% वो जनरल कास्ट हैं।

वहीं इस population में से reservation की बात करें तो एससी की population 16.63 % है और उनको 15% रिजर्वेशन मिला है और एससी की बात करें तो उनकी पापुलेशन 8.61% है और उनको 7.5% मिला हुआ है और ओबीसी की पॉपुलेशन 52% है, उनको 27% का reservation मिला हुआ है।

तो around 75% backward class में से 50% को reservation मिला हुआ है और अभी जो 10% ईडब्लूएस मिलता है उसकी बात हम आगे करेंगे।

अब देखिए इसमें सबसे ज्यादा discussion चलता है कि reservation तो खुद एक discrimination है। आप जाति के आधार पर भेद-भाव करके किसी को ज्यादा और किसी को कम reservation दे रहे हो और हमारा लॉ कहता है कि हर कोई कानून की नजर में equal है और equality हमारा फंडामेंटल राइट है तो reservation तो illegal हुआ. तो एक ऐसा tool जो खुद discrimination कर रहा है वो discrimination से कैसे बचा पाएगा?

अब देखिए ये सारी चीजें discuss करने के लिए पहले हमें अपने आप को observe करना पड़ेगा कि हम अपने परिवार में कैसे behave करते हैं? मान लीजिए आपके परिवार में दो बच्चे हैं. एक 5 साल का है जो चल सकता है और दूसरा बच्चा अभी छोटा है तो अगर हमें कहीं जाना हो तो वहाँ पर हम क्या करते हैं?

जो छोटा बच्चा है, जो चल नहीं सकता उसको गोदी में ले लेते हैं और जो चल सकता है उसको चलने दिया जाता है या फिर ये कहते हैं कि इस घर में equality follow होती है.

दोनों के लिए rule same रहेंगे, दोनों को चलना पड़ेगा नहीं। अब ऐसे ही अगर आप घर में मान लो कि घर में दो भाई हैं अगर किसी वजह से एक भाई की हेल्थ वीक है और उसको डॉक्टर ने कहा है कि उसको अच्छी खुराक की जरूरत है तो आप क्या कहेंगे कि घर में तो इतना ही राशन आता है, सब में बराबर बटेगा, equality होगी या फिर जिस भाई को अच्छी खुराक की जरूरत है, उसको ज्यादा खुराक दोगे जब तक वो ठीक ना हो जाए।

ऐसे ही अगर आप मान लो कि आप ट्रेवल कर रहे हो अपनी फैमिली के साथ कहीं पे और एक सीट खाली है वहां पे, तो उस टाइम पर जो पहले पहुंच जाता है, वो बैठता है, या फिर कोई फीमेल या बुजुर्ग आदमी होता है, उसको आप सीट देते हो.

देखिए जब आप अपने घर की बात करें तो आप कहोगे कि हम घर में भी किसी का discrimination ही होता है। जिसकी वजह से equality आती है, ऐसे ही हमारे constitution के लिए पूरा देश एक परिवार है और वो exactly वैसे ही एक्ट करता है, जैसे हम अपने परिवार में एक्ट करते हैं।

और हमें रिजर्वेशन इसलिए बुरा लगता है क्योंकि जैसे ही हम परिवार के बाहर निकलते हैं, हम बाकी लोगों को बाहर ही समझते हैं। जब हम अपने घरों में ये सारी चीजें कर रहे होते हैं, तो हम ध्यान नहीं देते हैं. लेकिन हम इसलिए कर रहे होते हैं कि unsaid कम्युनिकेशन में एक स्टेबिलिटी मेन्टेन हो घर के अंदर। अगर हम human ground को छोड़ दे logicaly भी देखें तो रिजर्वेशन एक मजबूरी है.

अब एक घर का एक्सपले लो किसी फादर के 3 बेटे हैं. और वो इन तीनों बेटों को इग्नोर करना शुरू कर दें आप देखोगे की वो लेफ्ट आउट भाई आगे चलकर घरवालों के अगेंस्ट हो जाता है. भाइयों के अगेंस्ट हो जाता है. वो उस घर के लिए डेंजरस हो जाता है. इसलिए एक अक्लमंद फादर अपने बेटों में कोई फर्क नहीं करता है।

जरूरत के हिसाब से चीजें manage करके सबको साथ में लेकर चलता है। ऐसे ही अगर कोई कंट्री है और उसमे किसी कम्युनिटी के साथ discrimination और inequality बहुत ही ज्यादा लेवल पे बढ़ जाती है तो rebellious हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ और झारखण्ड का एक्साम्प्ल हमने देखा है कि वहाँ पे कैसे लोग नक्सली बन गए, red corridor जो area बोला जाता है, वहाँ पे बिजनेस वगैरह करने में कितनी दिक्कत आती है?

नक्सली आज की डेट में बहुत ही बड़ी प्रॉब्लम बन गया इंडिया के लिए और ये सिर्फ इंडिया की ही बात नहीं है। किसी भी देश की गवर्नमेंट अगर किसी एक स्टेट को इग्नोर करना शुरू कर दें, तो आप देखिएगा कि वो एक स्टेट पूरे देश के लिए threat बन जाती है।

यही reason है कि सिर्फ इंडिया ही नहीं, इंडिया के बाहर के देशों में भी reservation दिया जाता है। क्योंकि देश सबको साथ लेकर चलने से बनता है। वरना देश के लिए एक nuclear bomb से भी बड़ा खतरा हो जाता है। अगर देश के अलग-अलग community देश के ही खिलाफ हो जाएं।

हम बात करते हैं कि हम world की largest democracy है। लेकिन जब तक हर community का participation नहीं होगा। आप पेपर में तो largest democracy हो जाओगे लेकिन actual में नहीं
होंगे।

इतिहास में कैसा था हमारा कास्ट सिस्टम

अभी हम थोड़ा सा पीछे जाएँ तो इंडिया में cast system की जगह one का system था। पढ़ाई और education सिर्फ ब्राह्मण करते थे। रक्षा और राजपाठ क्षत्रिय संभालते थे। वैश्य सिर्फ व्यापार करते थे और शुद्र थे वो इन तीनों वर्णों की सेवा करते थे। लेकिन इनमें कोई ऊपर या नीचे नहीं था। ये सिर्फ काम के
हिसाब से divided था। हर जगह ऐसे ही था.

इंडिया के बाहर भी ऐसे ही था अगर आप इंडिया के बाहर नाम सुनते होंगे स्मिथ वगैरह तो उनका भी नाम उनके काम के हिसाब से ही पड़ गया था। स्मृत जो थे वो लोहार को बोला जाता है। अगर उस टाइम पे सबको पता होता कि education से ज्ञान आएगा और जिसके पास ज्ञान ज्यादा होगा वही rule करेगा।

शायद situation अलग होती। लेकिन काम के basis पर ये division हुआ और आगे चलकर जिसके पास राज और education थी वो बड़े हो गए, बढ़ते गए और अपने हिसाब से rule सेट करते गए और पूरा सिस्टम भेद-भाव में बदल गया.

आज हम भले reservation की बात करते हैं लेकिन अप्पर क्लास के पास education में 100% reservation हजारों साल से था वो आगे बढ़ते रहे यहाँ तक कि इंडिया की रोड्स तक पे 100% reservation था।

बैकवर्ड क्लास को रोड पर जाना तक allowed नहीं था। बैकवर्ड क्लास के जो मेल थे उनको अपने गले में कुल्हड़ लटका के चलना होता था ताकि वो जमीन पे थूक ना पाए, कमर पर झाड़ू बांधकर रखनी होती थी ताकि अगर पैर के निशान पड़ जाए तो उनको हटा सकें ताकि अप्पर क्लास उस पर चल सके।

untouchability, छुआछूत। ये इंडिया की reality है। इसको हम इग्नोर नहीं कर सकते हैं। महाभारत के भी टाइम पे लिखा था कि एकलव्य अर्जुन से ज्यादा टैलेंटेड थे। लेकिन वो अपनी कास्ट की वजह से कुछ नहीं कर पाए। आप खुद सोच के देखिए जिसको छूना allowed नहीं था, वो कुछ भी नहीं कर सकता।

उसको इंसान ही नहीं माना जा रहा था। जानवरों से भी बदतर हाल किया गया था। जानवरों से दूध पिया जा रहा था. उनको पिलाया जा रहा था. चीटियों को आटा खिलाया जा रहा था. लेकिन इंसान को छूना allowed नहीं था.

जब छूना allowed नहीं था तो ना वो पढ़ सके, ना उनको नौकरियाँ मिल सकी और इस वजह से उस पर्टिकुलर कम्युनिटी की और इस से उस particular community की जो capability है वो कम होती गई। generation to generation यही चलता रहा।

लेकिन इस चीज को बिना समझे लोग बड़ी आसानी से बोल देते हैं कि backward class कम capable होते हैं। कुछ लोग तो आम भाषा में बोल देते हैं कि जींस strong होते हैं upper class वालों के। आपने अपने आसपास बातों-बातों में सुना होगा कि आप लगते नहीं हो कि आप एससी हो या फिर आप एसटी नहीं लगते हो या फिर ये असली राजपूत हैं।

ये बातें बहुत ही कॉमन हैं लेकिन दिखाती है कि हम अंदर सोचते क्या हैं? जबकि असल बात ये है कि बैकवर्ड क्लास से हजारों साल तक opportunity छीनी गई हैं। इस वजह से वो हमारी बराबरी पे आ के नहीं खड़े हो पा रहे हैं।

अब यूएस की बात करें तो वहाँ पे जो गोरे है वो important position पे ज्यादा हैं, ब्लैक के comparatively. तो इसका मतलब ये थोड़ी है कि ब्लैक कम capable हैं. इसका सिंपल सा मतलब ये है कि वहाँ पे भेदभाव हुआ है। In Fact अगर आप हिस्ट्री देखोगे इंडिया की तो जो इंडिया के शिल्पकार थे, ये बहुत ही ज्यादा स्किलफुल थे। बाहर के देशों से लोग देखने आते थे कि यहाँ के लोहार आयरन में कार्बन क्यों मिक्स कर रहे हैं? ताकि जंग ना लगे।

पीतल के बर्तन बनाने का process बहुत ही अच्छे से ये लोग जानते थे। जबकि बाहर के लोगों को सोने और पीतल में difference तक नहीं पता था। वेद व्यास जी जो दासी पुत्र थे, आज की भाषा में वो दलित होते।

लेकिन वो महर्षि थे। महर्षि, वाल्मीकि, महर्षि अतारी आज की language अगर use होती है तो ये सारे दलित थे। जैसे-जैसे भेदभाव शुरू हुआ, ये लोग पीछे होते गए, आप किस कास्ट में पैदा हुए, इसमें आपका कोई रोल नहीं है। आपके आस-पास environment कैसा मिल रहा है, आपको opportunity क्या मिल रही है? वो बहुत important चीज है।

जब कास्ट सिस्टम की बात होती है अंबेडकर को क्यों याद किया जाता है

अब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में लोग आज इतनी बात करते हैं, जब वो स्कूल में गए थे, तो उनको अपनी खुद की बोरी घर से ले के जानी पड़ती थी। क्योंकि क्लास के साथ बैठना allowed नहीं था, बाहर बैठ के पढ़ते थे। पानी भी peon दूर से देता था।

जिस दिन peon नहीं आता था, उनको पानी नहीं मिलता था। इस तरह की struggle से ले के कैसे उन्होंने अपना नाम कमाया कि आज अमेरिका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी तक में उनकी मूर्ति स्थापित है, ये कहानी काफी inspiring है और आपको भी जाननी चाहिए।

हमारा समाज कितना जिम्मेदार है कास्ट सिस्टम के लिए

एक तरफ एक बच्चा है जिसके माँ-बाप educated हैं। सही टाइम पे उन्होंने बच्चे को अच्छे स्कूल में डाल दिया। उसकी दो-दो तीन-तीन ट्यूशन लगा दिए हैं। अलग-अलग स्पोर्ट्स भी खिलाए जा रहे हैं। सही टाइम पे उसको लैपटॉप मिल गया वो अच्छे से लैपटॉप भी चलाना जानता है।

वहीं दूसरी तरफ एक बच्चा है जिसके माँ-बाप पढ़े-लिखे नहीं है। सरकारी स्कूल में बस नाम लिखवा दिया गया है, घर पे पैसे भी नहीं है इसलिए उसको काम पे भी जाना पड़ता है।

आसपास का माहौल सही नहीं है उसने लैपटॉप तो देखा तक नहीं है। तो इन दोनों में से अगर किसी की नौकरी लगेगी तो किसकी लगेगी? जो पहला बच्चा है उसी की नौकरी लगेगी, वही successful होगा, वही आगे बढ़ेगा और फिर ये एक cycle बन जाता है और इसी यहीं नहीं खत्म होगी।

same चीज इनके बच्चों के साथ भी होगी, जो successful है, वो पीढ़ी दर पीढ़ी successful होगा, जो unsuccessful है, उसका खानदान उसी never ending vicious cycle में घूमता रहेगा।

बस लाखों बच्चों में से एक exception निकल जाएगा। हर कोई उसी का example देने लगेगा। आजकल का trend है कि जब भी किसी बच्चे को introduce कराया जाता है reservation तो ऐसे introduce कराया जाता है कि ये एससी, एसटी category का है, इसके नंबर कम थे उसके बाद भी इसका selection हो गया.

लेकिन ये बहुत ही गलत तरीका है, उनको हर एक चीज समझानी बहुत ही जरूरी है, वरना society की वो जो एक गलत understanding है, उसको लेकर लोगों से लड़ते रहेंगे, नफरत फैलती रहेगी।

एससी, एसटी कितने पीछे हैं, इस बात का आप इससे अंदाजा लगा सकते हो कि भले ही education में reservation है। नौकरियों में reservation है, लेकिन उसके बाद भी उस reservation की सीट लेने के लिए minimum जो चीज चाहिए, वो तक नहीं है उनके पास।

backward class के पास, एक गाँव से निकल के उस सीट को लेना ही अपने आप में एक टास्क है आप देखते होंगे कि एससीएसटी की काफी जगह ऐसी सीट्स हैं जहाँ पे खाली पड़ी रहती हैं, 81 सीट्स तो पीएचडी courses में खाली पड़ी हैं,16 आईआईटी में. 2020 के डेटा में तो ये था कि 4200 सीट जो थी वो खाली थी.

एससी, एसटी और ओबीसी की हाल इतना खराब है कि उस मिली हुई सीट को लेने के लिए जो एक बेसिक रिसोर्सेज चाहिए वो तक नहीं थे. 1000 लोग, 1000 सीट के लिए एग्जाम देते हैं उसमें से 20 से 25 सीट जो होती हैं वो बैकवर्ड क्लास को मिल जाती हैं।

जितने लोगों का नहीं होता है सब मिलकर सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के सामने ये जितने लोगों को सीट मिली है इनको जलील करते हैं। ये सुनने में बहुत ही नॉर्मल लगता है. लेकिन किसी कम्युनिटी को एक सोसाइटी से कट ऑफ करना बहुत ही पेनफुल है. जो लोग गाँव में रहते हैं उन्होंने खाप पंचायत का नाम जरूर सुना होगा और भी अलग-अलग पंचायत होती हैं, वो इतनी स्ट्रांग क्यों होती हैं।

क्योंकि लोगों को डर होता है कि इनके नियम अगर फॉलो नहीं किए तो हमें समाज से निकाल दिया जाएगा। समाज से निकलने का जो डर होता है वो बहुत ही बड़ा डर होता है. ये सिर्फ वही समझ पाएगा, जो समाज से निकला हुआ है, जो पीछे छूटा हुआ है, अंग्रेज हमें जान से थोड़ी मार रहे थे, वो भी तो हमारे साथ यही भेदभाव कर रहे थे.

जिसके लिए हमने कितनी कुर्बानियां दी. लेकिन दिक्कत की बात ये है कि आजाद होने के बाद भी ये जो untouchability जैसी चीजें हैं उसको हमने छोड़ा नहीं, reservation ही एक ऐसा tool है जिसकी वजह से ये difference खत्म हो सकता है. भले ही ये slow तरीके से काम कर रहा है लेकिन ये काम कर रहा है, कहना बहुत ही आसान होता है कि ये क्या तरीका है? इलेक्शन में दोनों सीट पे सिर्फ बैकवर्ड क्लास को ही allowed कर रखा है. लेकिन असल बात ये है कि अगर ऐसा नहीं होगा तो बैकवर्ड क्लास नहीं जीत पाएगा। डराकर, धमकाकर, पैसे के जोर पे वो नहीं जीत पाएगा।

Income Based Reservation

अब देखिए इसमें सबसे ज्यादा जो लोगों को believe है वो ये है कि reservation income based होना चाहिए और मुझे भी काफी time तक यही लगता था जब तक मुझे details नहीं पता थी. देखिए reservation को कभी भी इसलिए नहीं बनाया गया कि all over India में financially लोग equal हो जाए.

अगर आप constitution के article 14, 15 और 16 पढ़ोगे तो उसमें economic equality जैसे words use नहीं किए गए हैं। बल्कि representation वर्ड use हुआ है।

आप exam वगैरह में भी अगर जाओगे तो वहां देखोगे कि reservation के साथ representation जो वर्ड है वो use होता है और ऐसा इसलिए है क्योंकि reservation कोई poverty elimination scheme नहीं है। reservation सिर्फ और सिर्फ इसलिए लाया गया ताकि जो हजारों सालों से backward class पे अत्याचार हुआ है और जो भेदभाव हुआ है उसको हटाया जा सके।

आप ये भी पढ़ सकते हैं:

Recession 2023: नौकरियों से बड़ी संख्या में लोगों को क्यों निकाला जा रहा है? Why layoffs are happening?

क्या डूबने दिया जाएगा LIC का पैसा?, Will LIC keep losing its money?, LIC-Adani Controversies

आप किसी को भी पैसा देकर भले ही अमीर बना दो. लेकिन उसकी कास्ट उसके साथ हमेशा रहती है। अब जरूरी नहीं है कि अगर कोई आदमी अमीर हो जाए तो उसके साथ उसकी कास्ट को लेकर भेदभाव नहीं होगा। अगर गरीबी की वजह से कोई आगे नहीं बढ़ पा रहा है तो उसके लिए national family benefit scheme, national old age pension scheme, मनरेगा, नरेगा, वगैरह ये चीजें हैं.

below poverty line परिवारों के लिए अलग scheme है, subsidies है, सरकार अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाकर गरीबों की और मदद कर सकती है, corporate टैक्स जो है वो बढ़ा सकती है. गरीबी हटाने के लिए poverty welfare plans strong होने चाहिए।

reservation लाने के पीछे basic सा जो concept है वो यही है कि जो backward class है उसका representation बढ़े और ये चीज मैं आपको एक example से समझाता हूँ. आपने देखा होगा कि जब मायावती जी सीएम बनी थी तो एक माहौल सा बना था कि बैकवर्ड क्लास के लोग आगे आ रहे थे. अलग-अलग रूल्स बने, लोग सोच समझ के बात कर रहे थे। कहीं कोई दिक्कत ना हो जाए.

अगर हम backward class को कुछ बोल दें या फिर उनके साथ कुछ कर दें। अब आप सोच के देखिए सिर्फ एक backward candidate की representation की वजह से कितने लाखों backward class को confidence और respect मिलने लगी। यही power होती है reservation की। यही इसके पीछे का logic है।

अब कोई लोगों का ये भी कहना है कि जो जुल्म है वो तो हमारे पूर्वजों ने किया तो हम क्यों भुगते? लेकिन यही लोग जब अपने ancestor की property लेनी होती है तो उसमें पीछे नहीं हटते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो reservation के against में हैं।

लेकिन वो सेम लोग ईडब्लूएस की बात पर चुप रहते हैं क्योंकि इस पूरे मुद्दे पे जब लोग बहस करते हैं तो अपने फायदे और नुकसान को ध्यान में रख के बात करते हैं logic के basis पे नहीं करते हैं.

ईडब्ल्यूएस economically weaker sections के लिए 10% का कोटा है ये income based reservation है जो general category को दिया जाता है। अब ये जो economically reservation है ये अपने आप में बहुत challenging है।

सबसे बड़ा challenge इसमें ये है कि पहले कोई गरीब था फिर अमीर हुआ फिर दोबारा गरीब हो गया तो इसका ट्रैक रखना बहुत मुश्किल है। अभी जो इडब्ल्यूएस आया है उसमें 8 लाख annual इनकम की limit लगी है कि इससे कम वाले ईडब्लूएस की category में आएंगे और last year की जो इनकम होगी उसके basis पे decide होगा।

आए दिन cases आ रहे हैं कि ईडब्लूएस लेने के लिए बच्चों के जो माँ-बाप हैं वो exam से एक साल पहले ही अपनी जॉब छोड़ दे रहे हैं ताकि ईडब्लूएस वाली कैटेगरी में उनका बच्चा आ जाए।

बाद में फिर ज्वाइन कर लेंगे। दूसरी चीज इनकम को evaluate करने का कोई प्रोसेस ही नहीं है। सिर्फ मेट्रो सिटीज के organised सेक्टर्स टैक्स payers और गवर्नमेंट जॉब वालों के अलावा आप पता ही नहीं कर सकते कि ईडब्ल्यूएस का सही दावेदार कौन है?

यही reason है कि ninety से ninety five परसेंट लोग एक तरह से पूरा देश ईडब्लूएस की category में आ गया है। उससे भी बड़ी दिक्कत है कि जो influential लोग हैं उनके लिए फेक इनकम सर्टिफिकेट बनवाना बहुत ही easy है. इसलिए आए दिन न्यूज़ आ रही है कि फेक इनकम सर्टिफिकेट बनवाए जा रहे हैं। अब अगला question आपका ये होगा कि cast certificate भी तो fake बन सकते हैं।

देखिए इनकम सर्टिफिकेट तो हर कोई बनवा लेता है. लेकिन जो cast certificate है ये नहीं बनवाया जाता है। एक कहावत भी है कि जाती कभी नहीं जाती। कोई भी upper cast अपनी cast नीचे नहीं करवाना चाहता क्योंकि उसको बहुत अच्छे से पता है कि society में backward कहलाने पर कितना भेदभाव होता है और इसके साथ-साथ लोग परिवार के दादा-परदादा को भी जानते हैं जो अगल-बगल रहते हैं तो वहाँ आती है।

हमारे देश में religion change करवाना फिर भी आसान है। लेकिन कास्ट चेंज कराना बहुत ही मुश्किल काम है। कोई भी अपर कास्ट वाला, लोअर कास्ट वाला बन के नहीं घूमना चाहता क्योंकि उसको पता है नौकरी तो भले ही मिल जाएगी लेकिन उसके बाद भी भेदभाव होगा उसके साथ। इसलिए कास्ट बेस सिस्टम अभी भी relevant है।

गांधी जी का मानना था कि discrimination तभी खत्म होगा जब लोग इंटर कास्ट मैरेज करेंगे। इसलिए उस particular टाइम पे वो सिर्फ उसी शादी में जाते थे जो इंटर कास्ट होती थी।

मैरिज में भी लोअर कास्ट को disadvantage होता है क्योंकि कोई भी capable लड़का या लड़की मिलना दलित के लिए बहुत ज्यादा मुश्किल है क्योंकि घरों की आम भाषा में आपने जरूर सुना होगा कि बेटा किसी से भी शादी कर लेना। लेकिन कोई छोटी कास्ट से मत उठा लाना और कुछ लोग तो टोंट मारते हैं कि reservation तो खैरात में मिला है।

उनके लिए भी एक detail share कर देता हूँ कि अंग्रेजों के time पे upper cast की dominance की वजह से backward class जो थे वो अंग्रेजों से एक separate electorate मांग कर रहे थे और ये वो time था जब सबको realize हुआ कि बिना backward class के उनकी political power अंग्रेजों के सामने कुछ नहीं रह जाएगी और इसके बाद अंबेडकर जी की बात मान के पूना पैक का समझौता हुआ और देश में reservation आया.

अभी भी कुछ लोगों का ये मानना है कि reservation की जरूरत अब नहीं है. अब चाहे एससीएसटी हो या जनरल हो सब एक लेवल पे आ चुके हैं और अक्सर कुछ आईएएस पीसीएस का example देकर ये बात की जाती है.

आप एक काम करिएगा आप जहाँ भी रहते हैं वहाँ पे अपने घर से बाहर जा के जो सफाई करने वाले हैं या जो छोटे वर्कर्स हैं randomly उनके पास जाइएगा और 10 -12 लोगों से उनकी cast पूछिएगा। कोई भी सिंघानिया, ओबेरॉय, सूर्यवंशी ये सब कास्ट आपको सुनने को नहीं मिलेगी और उस दिन आपको पता चलेगा कि reservation की जरूरत क्यों है?

होता क्या है कि daily, मुंबई, से मेट्रो सिटीज के मॉल में चक्कर लगा के चाय की दुकान पे discussion करने में बहुत आसान लगता है कि reservation हट जाना चाहिए। लेकिन actual जो ग्राउंड reality है वो बिल्कुल ही अलग है। आप जरा गाँव की साइड जाएंगे, कस्बों की साइड जाएंगे, तो वहां ग्राउंड
रियलिटी एकदम अलग है।

अभी गवर्नमेंट यूपीएससी के लिए लेटरल एंट्री रिक्रूटमेंट लाई थी, जिसमें बिना एग्जाम के बिना रिजर्वेशन के डायरेक्ट इंटरव्यू के through लोगों का recruitment हो रहा था, और उसमें किसी भी तरीके का reservation नहीं दिया गया था.

उसमें जितने भी लोग select होकर आए थे, उसमें एक भी बैकवर्ड क्लास का नहीं था। अगर आज की डेट अगर रिजर्वेशन में बंद कर दिया जाए तो जो slow स्पीड से बैकवर्ड क्लास आगे बढ़ रहा है। वो एकदम रुक जाएगा।

आज भी आप देखोगे कि upper कास्ट population में बहुत ही कम है लेकिन important position हो. ज़मीन की ownership हो या कुछ और हो हर चीज में सबसे ज्यादा जो हिस्सेदारी है वो upper कास्ट की है और ये कोई coincidence नहीं है।

देश भर की जितनी भी important position है उसमें 400 से भी ज्यादा आरटीआई डाली गई. उसमें backward class का representation ना के बराबर था। infect nil था. इन 400 आरटीआईज का लिंक मैंने यूट्यूब के description में दे दिया। ये देख लीजिएगा।

देखिए प्रॉब्लम ये नहीं है कि अपर कास्ट ज्यादा अच्छी पोजीशन पे है। प्रॉब्लम बस छोटी सी है कि कुछ अपर कास्ट वालों को सबकी बात नहीं है कि मैं कर रहा हूँ. कुछ अपर कास्ट वालों को ये लगता है कि उनका हक़ मारा जा रहा है और वो एक गुस्सा लेकर घूम रहे हैं एससी, एसटी के खिलाफ।

अभी आप हाल ही फिलहाल में देखोगे 2020 में विकास कुमार को सिर्फ इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि वो छोटी जात का हो के भी मंदिर में घुस रहा था. इंडिया के प्रेसिडेंट जब मंदिर में गए थे, उनके लिए भी कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी थी कि इनको भी नहीं घुसने दिया जाना चाहिए। लेकिन बाद में इसका clarification हुआ और वो फिर अंदर गए।

मैं आपको अपना भी एक example बताता हूँ कि बचपन का मेरा दोस्त जो junior class से मेरे साथ में था daily मेरे साथ रहता था। twelfth class में जाकर मुझे पता चला कि वो एससी है। जब उसने एक फॉर्म भरा वो स्कूल के पूरे group से छुपाता था कि वो backward class है। अभी कुछ तो reason होगा कि आज भी backward class ये बताने से झिझकते हैं कि वो एससी, एसटी है।

बचपन में मैं जिस एरिया में रहता था, वहां पर सफाई करने वाले जितने भी लोग आते थे, वो एक area decide करके एक साथ रहने लगे थे। उन लोगों ने मिलकर उनकी community के एक बच्चे को स्कूल
में admission करवाया।

जब वो बच्चा रिक्शे में स्कूल जाता था, को बहुत ही गलत-गलत नाम से चिढ़ाते थे और कई-कई तरीके से बोलते थे उसको। एक साल भी वो पूरा नहीं कर पाया और उसने स्कूल छोड़ दिया। अब आप सोच भी नहीं सकते कि डेली बेसिस पे वो लोग क्या सफर करते हैं?

Politics Behind रिजर्वेशन

अब देखिए सबसे बड़ी दिक्कत जो इस पूरे मुद्दे में है क्योंकि असल दिक्कत है वो है politician, ये नेता लोगों को कभी भी एक voting नंबर के count से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं और हर चीज को एक vote bank का circus बना देते हैं। ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ वो भी समझते हैं।

1932 में सबसे पहला reservation politics में ही दिया गया था, जिसे पूना पैक भी कहा जाता है ताकि backward class का participation हो, देखिए किसान और backward class, ये population में ज्यादा हैं।

इसलिए आप notice करोगे कि ये दोनों नाम हर नेता के भाषण में रहते हैं। तो जब politics में reservation आया तो के बाद तमिलनाडु गवर्नमेंट ने भी promise किया कि वो जीत के backward class को education में भी reservation देंगे और उसके बाद पहली बार देश में education के अंदर reservation आया।

अभी ये सब होने के बाद मोराजी देसाई जी देश के पीएम बने उन्होंने कहा कि ओबीसीस की जो population है वो 52% है। इनको भी reservation मिलना चाहिए और उन्होंने मंडल commission form किया। जिसमें 27% ओबीसी को reservation दिया गया. अभी मंडल commission तो बन गया था लेकिन नेता इसको हाथ लगाने से बच रहे थे।

इंदिरा गांधी जी ने इस पूरे मंडल commission को नहीं छेड़ा। फिर राजीव गांधी pm बने उन्होंने भी इस मंडल commission को नहीं छेड़ा। अब इसके बाद 1981 में वीपी सिंह जी की सरकार आई। ये सरकार मिली जुली सरकार थी इसमें कई नेता ऐसे थे जो पीएम बनना चाहते थे और इसमें भी वीपी सिंह यूपी में ज्यादा impact करना चाहते थे।

जो मंडल कमीशन था जिसको बाकी नेताओं ने हाथ नहीं लगाया था। उसको ये लेकर आए और ओबीसी को 27% reservation दिलवा दिया गया। बहुत ज्यादा गुस्सा हुए लोग, कई सारे प्रदर्शन भी हुए.

लेकिन ये फिर भी लागू हुआ। अब 50% के करीब reservation हो चुका था और इसके बाद नरसिम्हा राव जी आए और इन्होंने कह दिया कि हम 10% reservation economic status के basis पे देंगे और पहली बार EWS की जो बात यहीं से शुरू हुई थी.

अब देखिए धीरे-धीरे ये social issue की जगह एक vote bank की politics बनती जा रही थी. अब इसको मैं एक example से समझाता हूँ. अगर मैं किसी तरीके से system में घुस के किसी भी तरीके से एक particular community के लिए reservation ले के आ जाऊँ तो मेरी आने वाली पीढ़ियों तक को उस community से vote मिलेगा।

वहीं अगर मैं development वाला रास्ता चुनूँगा तो ये रास्ता थोड़ा लंबा होगा वो boring भी रास्ता है ये और अगर मैं system में घुस के किसी community का reservation हटा दूँ तो मुझे और मेरी आने की पीढ़ी तक को उस community से वोट नहीं मिलेगा।

यहीं reason है कि हमारे देश की history में आज तक किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि वो reservation को हटा सके और हर बड़ा नेता कैसे ना कैसे करके अपने vote bank के लिए reservation ले के आया और इस पूरे सर्कस के चक्कर में actual में जिसको reservation की जरूरत थी उसको struggle करना पड़ता है।

वोट बैंक की politics के चक्कर में हमारे constitution को multiple time amend किया गया है seventy seven, eighty first, eighty सेकंड, eighty fifth, ninety third ये सारे amendment किए गए हैं हमारे constitution में रिजर्वेशन को लेकर। हर पार्टी के जो बड़े नेता हैं वो reservation का सपोर्ट करते हैं और उसी पार्टी के जो छोटे नेता हैं वो reservation हटाने की बात करते हैं। ताकि लोग आपस में ही उलझे रहें।

किसी भी political पार्टी की अगर आपको real ideology देखनी है तो उसके छोटे नेता क्या narrative चला रहे हैं? उसके ऊपर आप ध्यान दीजिएगा। आपको समझ में आ जाएगा कि वो पार्टी narrative क्या चला रही है? क्योंकि जो बड़े नेता हैं वो एक सेट पैटर्न में जो required होता है बस वही बोलते हैं। आप एक चीज और notice करोगे कि 1932 से आज तक cast based sensors लोगों के सामने नहीं लाया गया है।

एससीएसटी की मजबूरी थी लोगों के सामने लाया गया क्योंकि constitutionके अंदर उसके प्रावधान है। लेकिन बाकी किसी भी कास्ट का जो census है वो लोगों के सामने ही नहीं लाया गया है। सालों से ये जो डेटा है ये ministry of social justice and welfare के पास पड़ा हुआ है.

लेकिन उसने उस डाटा को release ही नहीं किया है. अब ऐसा क्यों किया गया है वो एक अलग मुद्दा है. फिलहाल last में मैं यही कहना चाहूंगा कि कोई भी आदमी अपनी cast से बड़ा नहीं होता है. बड़ा आदमी वो होता है जिसके साथ बैठ के कोई भी आदमी अपने आप को छोटा ना feel करे.

One thought on “भारत में जाति आधारित आरक्षण सफल है या असफल, जाति आधारित आरक्षण की असली सच्चाई, Shocking Reality of Caste Based Reservation in India

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *